पुरे देश को जोड़ गए कलाम साहब
कल शाम अचानक खबर आई की कलाम साहब नहीं रहे और मानो पुरे देश में मातम सा छा गया. कल ही कई वर्षो बाद पंजाब में एक आतंकी हमला भी हुआ जिसमे कई मासूमो ने अपनी जान गवाई लेकिन ये सदमा उससे भी बड़ा था. सोशल मीडिया हो या मीडिया हर जगह सिर्फ कलाम साहब की ही चर्चा थी. कोई जाती, कोई धर्म, कोई पार्टी इससे अछूती नहीं रही. पूरा देश मानो एक साथ मातम मना रहा हो. हर संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति करने वाले नेताओ ने कोई बेहूदा बयान नहीं दिया, न ही हर मुद्दे पर ध्रुवीकरण का प्रयास करने वाले नेताओ ने कोई बात कही. आज वाकई में फक्र हुआ अपने हिन्दुस्तानी होने पर. एक आम हिन्दुस्तानी ऐसा ही है, उसके लिए न जाती मायने रखती है न धर्म.
एक आम हिन्दुस्तानी संवेदनशील है, कलाम साहब जैसे सरल और सच्चे इन्सान को खोने का उसे उतना ही दुःख हुआ जितना अपने परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु से होता है. एक आम आदमी गुस्सैल भी है. जब दामिनी के साथ दरिंदगी हुई तो पूरा देश रास्ते पर आ गया. ऐसा नहीं है की आम हिन्दुस्तानियों को एक दुसरे से जोड़ने के लिए कोई हादसा होना जरुरी है. इस देश में जाने कितनी जातीया, कितने धर्म है कितने तरह की भाषा बोली जाती है. इसके बावजूद सब एक है और यही इस देश की विशेषता है.
फिर ऐसा क्या होता है की सोशल मीडिया पर किसी पोस्ट से या किसी झूटी अफवा से दंगे भड़क जाते है, लोग एक दुसरे के खून के प्यासे हो जाते है? ऐसी हर घटना के पीछे कोई न कोई राजनेता होता है और उसका बयान. याकूब मेनन को फांसी की खबर हो या साघ्वी प्रज्ञा को जेल की खबर हमारे नेताओ की जबान चल पड़ती है. और फिर शुरू हो जाती है बहस. याकूब मेनन को फांसी हो या न हो इस पर अपनी राय बना सकू इसके न मैं काबिल हु और न मुझे इस मामले की पर्याप्त जानकारी. 20 साल से लम्बे समय तक न्यायालयों में जाने कितने सबूत और गवाह पेश हुए. और यदि मैं ये समझाने लग जाऊ की मेरे पास ऐसा कोई तर्क है जिसपर न्यायव्यवस्था ने कभी गौर नहीं किया तो यह मेरी मुर्खता होगी. हाँ लेकिन याकूब मेनन को फांसी इसलिए दी जा रही है क्योंकि वो मुसलमान है ऐसा कहने वालो को मैं जरुर विरोध करता हु. मेरा इस देश की न्याय व्यवस्था पर विश्वास है और सभी का होना चाहिए. संभव है की कल उसकी फांसी उम्रकैद में तब्दील हो जाए तो मुझे उससे भी कोई शिकायत नहीं होगी.
विडम्बना देखिये की जब जब इस देश पर कोई आतंकी हमला होता है हम सब एक हो जाते है और जब इनके दोषियों को सजा दी जाती है धर्म के ठेकेदार हमें धर्मो बाँट देते है. हमें ही सोचना और समझना होगा. कमसे कम कलाम साहब के निधन ने तो यह साबित कर दिया की इस देश का आम आदमी हिन्दू या मुसलमान से प्यार या नफ़रत नहीं करता. हम हिन्दू- मुसलमान के भेद से बहार निकल हमेशा एक दुसरे को इन्सान समझे यही कलाम साहब को सच्ची श्रन्धांजलि होगी.