दावत ए जयपुर
जयपुर में रहने वालो को दावतो की कभी कमी नहीं होती, यहाँ हर मौसम में खाने के लिए बहाने है. दावत में किसे बुलाना है इसका निर्णय बुलाने वाले को करना होता है लेकिन एक परिवार से कितने लोग वहा पहुंचेंगे इसका निर्णय आप नहीं करते, मेहमान खुद करता है. दावत के लिए न्योते (निमंत्रण) का मतलब सपरिवार, समित्रगण होता है, कभी कभार पडोसी भी साथ हो लेते है.
स्वर्गवासी होने का कोई मौसम नहीं होता इसलिए मृत्युभोज साल में कभी भी हो सकता है. देवतागण पूरा साल शादियो में न बिता दे इसलिए कुछ महीनो के लिए देव सो जाते है और फिर देव उठनी ग्यारस (एकादशी) के साथ फिर शादियो का सिलसिला शुरू हो जाता है. देव भले सो जाए हम इतने महीनो तक बिना दावत नहीं रह सकते इसलिए सवामनी, सैंसरघट (शहस्त्रघट), गोठ (गेट टूगेदर), पौष बड़े इत्यादि कार्यक्रम जारी रहते है.
दावत अक्सर रात को होती है इसलिए शाम होने के बाद आगंतुको का काफिला रवाना होता है अपनी अपनी कार में. ड्राइवर को इन्तेजार होता है आने वाले ट्रैफिक जाम का जो आपके गंतव्य स्थान से करीबन 3 -4 किलोमीटर पहले मिलने की आप उम्मीद कर सकते हो. सबसे अच्छी बात ये है की जयपुर में लेन सिस्टम नाम की कोई चीज नहीं इसलिए आप अपनी कार को किसी भी जगह सीधी, आड़ी, तिरछी कैसे भी मोड़ सकते हो. आपको केवल इतना सा ध्यान रखना है की इन कारो के बीच बची हुई जगह में से इसी तरह से मोटर साइकिल गुजरती है, उनसे न टकराये. स्थानीय जयपुर वासी इस कला में माहिर है इसलिए आपको पता भी नहीं चलेगा और कुछ मिनटो में ही सभी कार और मोटर साइकिले उस जगह को इतनी सुंदरता के साथ घेर लेगी की कोई भी व्यक्ति पैदल भी उस जाल में प्रवेश नहीं कर सकता. मनोरंजन के लिए सभी गाडियो के हॉर्न बजते रहेंगे.
यदि आपको जल्दबाजी है तो आप पहले से योजना बना कर अपनी कार को डिवाइडर के पास रखे ताकि मौका मिलते ही आप कार रॉंग साइड में मोड़ सके, हाँ लेकिन ये न समझे की यह कोई गोपनीय तरीका है. सभी स्थानीय लोग इस तरकीब से परिचित है इसलिए उस तरफ भी इतनी ही भीड़ होगी. ट्रैफिक पुलिस नहीं होने की गारंटी है इसलिए आप किसी भी लेन या साइड में जहा जगह हो अपनी गाड़ी घुसा सकते है, लक्ष्य केवल एक ही हो की मेरी गाडी सबसे आगे रहे.
ट्रैफिक जाम का अर्थ होता है आमने सामने का युद्ध, जहा जाम के दोनो तरफ ऊपर वर्णित जाल बुना हुआ होता है एक दूसरे के ठीक आमने सामने, और डिवाइडर के दोनो तरफ. यह स्थिति ज्यादा लम्बे समय तक नहीं रहती. एकाध घंटे के बाद कुछ लोग अपनी कार से उतरकर इन दोनो जालो को आर पार करवा देते है.
लेकिन यह सिर्फ पहला पड़ाव था. गंतव्य स्थान कोई लॉन होता है जिसपर साइनबोर्ड लगाने की परंपरा यहाँ नहीं है. इसलिए आपकी टीम में कोई भी यहाँ पहले कभी नहीं आया तो पूरी उम्मीद है की आप आधा घंटा इस काम में लगाओगे. वैसे ये लॉन भी झुण्ड में ही पाये जाते है, इसलिए आपको केवल अपना झुण्ड ढूंढ़ना है.
सही झुण्ड ढूंढने के बाद पार्किंग खोजने की बारी आती है, उसमे भी सुविधा है, आप रोड पर ही पार्किंग कर सकते है. केवल इतना ध्यान रहे की आपके बाद कोई आपकी कार के पीछे भी अपनी कार लगा सकता है. इसलिए पार्किंग कही भी करे लेकिन जगह वो चुने जिससे आप भोजन के बाद निकल सको.
एक बार लॉन में प्रवेश करने के बाद बधाई देने या मिलने की बाध्यता नहीं है. यदि शादी का कार्यक्रम है तो आवश्यक नहीं की आप पता करे दूल्हा आया या नहीं?, वरमाला हुई या नहीं?. ये सब औपचारिकताएं यहाँ नहीं होती. आप सीधे भोजन भी कर सकते है लेकिन परंपरा है की पहले कुछ अल्पाहार के स्टाल पर हाजरी लगाई जाए. सूप/कॉफ़ी, गोल गप्पे, वडा सांभर, पनीर चिल्डा, आलू चाट, टिकिया, दूध/जलेबी ये सदाबहार स्टाल है, कुछ बदलाव संभव है. कभी कभी राजस्थानी पास्ता, राजस्थानी नूडल्स इत्यादि भी होते है. यहाँ भी कतार में खड़े होने का प्रयास न करे, क्योँकि कतार होती ही नहीं. गलती से आपने उसे कतार समझ लिया तो आप वही खड़े रह जाओगे. अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर आपको केवल टेबल तक पहुँचना होता है. आपके हाथ में डिश पकड़ाने के लिए वहा कोई बंदा होता है. सेल्फ सर्विस का विकल्प भी खुला है यदि आपका नंबर जल्दी न आये. गोल गप्पे के स्टाल पर विशेष ध्यान रखे. आपके हाथ में जो दोना है उसे आपको सर्व करने वाले के हाथ के सबसे करीब ले जाना होता है. गोल गप्पा देने वाले के हाथ या नाख़ून की तरफ न देखे.
स्टाल का आनंद लेने के बाद आप मेले में थोड़ा टहल सकते है और जल्दबाजी हो तो सीधे भोजन भी ले सकते है. भोजन की प्लेट के साथ ही नैपकिन रखा होता है जिससे आप प्लेट, कटोरी चमच्च इत्यादि को साफ कर सकते है. भोजन के भी नियम वही है, थोड़ी मुश्किल चपाती वाले स्टाल पर आएगी. वहा एक बंदा चपाती सेंक कर चिमटे से टेबल पर फेंकता है और दूसरा उसपर घी लगाने के लिए खड़ा रहता है. लेकिन चपाती दूसरे बन्दे के हाथ न लगने दे, टेबल पर गिरते ही उसे पकड़ कर आप प्लेट में रख ले, और प्लेट घी लगाने वाले के सामने रख दे. यदि आप दोबारा जंग लड़ने से बचना चाहते है तो इसी टर्न में दूसरी चपाती हथियाने का प्रयास कर सकते है. लेकिन एक सावधानी बरते, पहले प्लेट में रखी हुई चपाती की सुरक्षा भी करनी है. यदि आपका ध्यान भटका तो पीछे से आने वाला हाथ आपकी प्लेट से भी चपाती उठा सकता है, मेरे साथ ये चोट चुकी है.
भोजन के बाद प्रयास करे, परिवार के मुखिया को ढूंढने का और फिर उनके हाथ में लिफाफा थमाना होता है. वो लिफाफा हाथ में लेकर कहेंगे की इसकी क्या जरुरत थी और आपके उत्तर का इन्तेजार किये बगैर जेब में रख लेंगे. फिर वो आपसे पूछेंगे “भोजन ले लिया?” और यदि आप जंग ए भोजन में उतरने का साहस नहीं जुटा पाये तो उनसे मत कहियेगा वरना वो किसी को आप के साथ लगा देंगे जो आपको मैदान ए जंग तक छोड़ आएगा, जंग आपको अकेले ही लड़नी है।
ये तो हुई मेरे जयपुर की कहानी। आपके शहर के क्या हाल है?