सलीम (योगेन्द्र) यादव का सच
योगेन्द्र यादव, आन्दोलन से निकली आम आदमी पार्टी का एक जाना माना चेहरा है. इस जन आन्दोलन को राजनैतिक दिशा देने में उनकी बहोत बड़ी भूमिका रही. आन्दोलन में अधिकतर लोग ऐसे थे जो राजनीति से नफ़रत करते थे. 3 अगस्त 2012 को जब अन्ना हजारे ने आन्दोलन को समाप्त कर राजनैतिक विकल्प देने की घोषणा की तब कई कार्यकर्ता इस निर्णय से खुश नहीं थे, जिनमे मैं भी एक था. राजनीति में जाने का निर्णय मैंने कैसे लिया इस पर फिर कभी लिखूंगा लेकिन उसमें बहोत बड़ी भूमिका योगेन्द्र यादव की थी. वैकल्पिक राजनीति का जो चित्र उन्होने दिखाया उसी से प्रभावीत होकर मैंने इस राजनैतिक आन्दोलन में सहयोग करने का निर्णय लिया.
लोकसभा चुनावो के दौरान आम आदमी पार्टी के खिलाफ धड़ल्ले से कुप्रचार किया गया. कई नेताओ पर बचकाने आरोप लगे. पूरी कोशिशो के बाद भी किसी नेता पर कोई भ्रष्टाचार, अपराधिक मामले या चरित्र से सम्बंधित आरोप नहीं लगा पाया. अचानक किसी मित्र से सुना की चुनावी सभाओ के दौरान योगेन्द्र यादव मेवात इलाके में खुद का नाम सलीम बताते थे और हिन्दू इलाके में खुद को यदुवंशी बताते थे. . योगेन्द्र यादव को जितना मैं जानता था, उसमे मुझे यह बात हज़म नहीं होती थी. वो केवल चुनावी नतीजो के भविष्यवक्ता नहीं थे, चुनाव सुधार पर उनके विचार सुनने योग्य है. जाती और धर्म के आधार पर, अपराधियो और धन के सहारे चलने वाली राजनीति को बदलना इस राजनैतिक पार्टी को बनाने का एक मुख्य उद्देश था. पूछने वाले मित्रो से मैंने इतना ही कहा की मुझे वो विडियो दिखाओ जिसमे योगेन्द्र यादव ने ऐसा कुछ कहा हो लेकिन मुझे ऐसा कोई विडियो कभी मिला नहीं.
उस समय राजस्थान में चुनावो की बड़ी जिम्मेदारी हाथ में होने के कारण मैंने इस विषय पर अधिक ध्यान नहीं दिया. चुनाव समाप्त होने के बाद जो राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई, उसमे मैं गया. प्रशांत भूषण के जंगपुरा स्थित निवास पर बेसमेंट में बैठक हो रही थी. योगेन्द्र यादव का मैं बहोत सम्मान करता हु लेकिन इतना बड़ा आरोप यदि है तो उसका स्पष्टीकरण खुद योगेन्द्र यादव से मांगना मैंने सही समझा. दोपहर भोजन के दौरान मौका देखकर मैं उनके पास गया. बड़ी नम्रता से मैंने उन्हें बताया की वैकल्पिक राजनीति को लेकर आपकी जो सोच है उससे प्रभावित होकर ही मैंने राजनीति में आने का निर्णय लिया. लेकिन आप पर यदि राजनैतिक लाभ के लिए अपने आप को सलीम बताये तो मुझे दुःख होता है. क्या यह आरोप सही है? क्या आपका नाम सलीम है?
उन्होने जवाब दिया हाँ, मेरा बचपन का नाम सलीम है. मुझे विश्वास नहीं हुआ. मैंने पूछा यह कैसे संभव है, आप तो हिन्दू है. योगेन्द्रजी ने बड़ी शांति से अपनी शैली में जवाब दिया –
“मेरे दादा श्री रामसिंह जी, हिसार के एक स्कुल मेंहेडमास्टर और हॉस्टल के वार्डन थे। 1936 में वहा सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी। कुछ दंगाई हॉस्टल आ पहुंचे। वो हॉस्टल के बच्चो को मारना चाहते थे। दादाजी दंगाइयो के सामने खड़े हो गए और कहा की बच्चो को मारने से पहले आपको मुझे मारना होगा। दंगाइयो के सर पर खून सवार था। उन्होनेगर्दन कांट कर मेरे दादाजी की हत्या कर दी। हत्या करने के बाद वो लोग बच्चो पर हमला किये बगैर चले गए। यह घटना मेरे पिताजी की आँखो के सामने हुई. उनकी उम्र उस समय लगभग 8 साल थी. इस दंगे की खबर उस समय के ट्रिब्यून अखबार में छपी थी. “
“देश आजाद हुआ। सारा देश आजादी की खुशिया मना रहा था। और दूसरी तरफ 19 साल की उम्र में मेरे पिता फिर एक दंगे के गवाह बने। बंटवारे की आग में जहा पाकिस्तान में हिन्दु मारे जा रहे थे, सरहद के इस पार उनकी आँखो के सामने मुसलमानो का कत्लेआम हुआ। इन दोनो घटनाओ का उनके बाल मन पर गहरा प्रभाव पड़ा। मेरे पिता प्रोफेसर देवेन्द्र सिंह गांधीवादी थे। धर्म के नाम पर इन्सान को इंसानो की हत्या करते देखा था, हैवान बनते देखा था। इस नफ़रत का जवाब गांधीवादी तरीके से देने का उन्होने निर्णय लिया और तय किया की मैं अपने बच्चो को मुस्लिम नाम दूंगा। साम्प्रदायिक हिंसा के जवाब में उन्हें कौमी एकता की मिसाल पेश करनी थी।”
“1957 में मेरी सबसे बड़ी बहन का जन्म हुआ। पिताजी ने उसका नाम नजमा रखा। लेकिन माँ को ये मंजूर नहीं था। उसे चिंता थी बेटी की शादी की। नजमा का नाम नीलम हो गया। 4 साल बाद मेरी छोटी बहन का जन्म हुआ और उसका नाम पूनम रखा गया। 1963 में अपने बेटे को मुस्लिम नाम देने की उनकी इच्छा पूरी हुई। मेरा नाम सलीम रखा गया। मेरी माँ, पत्नी, बचपन के मित्र आज भी मुझे इसी नाम से पुकारते है।”
“5 साल की उम्र में मैं स्कुल जाने लगा. वहा मुझे पता लगा की मेरे नाम में कुछ तो गलत है। बच्चे मुझसे पूछते मैं हिन्दू हु या मुसलमान? मेरे माता पिता हिन्दू है मुसलमान? मेरा नाम स्कुल के बच्चो के लिए मजाक बन गया था। रोजाना वही सवाल सुनकर मैं तंग आ गया। और तब मेरा नाम योगेन्द्र रखा गया। “
यह सुनते वक्त फिल्मोमें देखे हुए सांप्रदायिक दंगो के दृश्य मेरी आँखों के सामने आ गए. ऐसी स्थिति में अपने आप को उनके पिताजी की जगह रख कर देखू तो शायद मैं अपने आप को दंगाई बनने से न रोक पावू.
सलीम का यह सच सचमुच दिल को छू गया। उनके पिता एक सच्चे गांधीवादी थे जिन्होने गाँधी को केवल पढ़ा या भाषणो में सुनाया नहीं बल्कि अपने जीवन में उतारा। योगेन्द्र जी ने भी अपने बेटे का नाम पेले रखा और बेटी का सूफी धर्मा। उनके भांजे का नाम समीर फिरोज है।
चाहे जो भी हो, सलीम (योगेन्द्र) यादव को इस बात का राजनैतिक लाभ नहीं उठाना चाहिए। आरोप लगे थे की वो हिन्दू इलाको में खुद को यदुवंशी बताते थे और मुस्लिम इलाको में सलीम।
जवाब में योगेन्द्रजी ने कहा –
” यदि मुझे इस तरह की राजनीति करनी पड़े तो मेरा राजनीति में आना ही बेकार है। इसी राजनीति को बदलने के लिए हमने पार्टी बनाई। मैंने कही भी और किसी भी चुनावी सभा में इस बात का उल्लेख नहीं किया। मेरे सभी चुनावी भाषणो की विडियो किसी न किसी मीडिया के पास उपलब्ध है। उनमें से एक भी ऐसा विडियो दिखा दो जहा मैंने खुद के जाती या नाम का उल्लेख भी किया हो। मैंने उस समय भी प्रेस कांफ्रेंस कर विरोधियो को खुली चुनौती दी थी। आज दोबारा कह रहा हु। मेरे सभी विरोधियो को चुनौती है इस आरोप को साबित करो वरना इस तरह की ओछी राजनीति को रोको।”
यह पूरी तरह निराधार, घटिया किस्म का आरोप बड़ी तेजी से फैलाया गया। प्रभाव इतना तेज था की आज भी पार्टी के भी कई कार्यकर्ता इसे सच मानते है।
योगेन्द्रजी ने इस घटना का जिक्र पहली बार मीडिया में तब किया जब उनके खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाकर अफवाह उड़ाई गई. जिस परिवार ने सांप्रदायिक दंगो की आग को सहा हो, सामाजिक उपेक्षा की परवाह किये बगैर कौमी एकता की मिसाल रखी हो, जिन्होने खुद आजीवन साम्प्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई लड़ी हो, उनपर ऐसे आरोप लगाना निश्चित शर्मनाक है. मन में बड़ी ग्लानी हुई। मैंने भी जाने अनजाने पार्टी के मित्रो के साथ इस बात का उल्लेख किया होगा और इस अफवाह को फ़ैलाने के पाप का भागीदार बना।
मैं अपना पश्चाताप कर रहा हु। यह सच्चाई हजारो लोगो तक इस ब्लॉग के माध्यम से पहुंचा कर। यदि आप योगेन्द्र यादव पर लगे आरोपो को सच मानते है, तो सबुत दीजिये (जिन्हें खोजना बहोत आसान है क्योँकि उनकी सभी सभाओ की विडियो रिकॉर्ड उपलब्ध है) वरना मेरी सलाह है, मेरी तरह पश्चाताप करे इस लेख को कमसे कम हज़ार लोगो तक पहुंचा कर। जीतनी तेजी हमने अफवाह फैलाई उतनी ही तेजी से सच्चाई भी फैलाये।
संभव है इस कहानी को पढने के बाद भी आपको इस पर विश्वास न हो. ऐसे मित्रो से निवेदन है की तथ्यो को खुद जान ले. योगेन्द्रजी के पिता श्री गंगानगर, राजस्थान के खालसा कॉलेज में पढ़ाते थे. वहाँ अधिकतर लोग योगेन्द्रजी को सलीम के नाम से जानते है. श्री गंगानगर की विनोबा बस्ती, जहां उनका बचपन बिता, वहाँ भी उनके पडोसी सलीम को ही जानते है.
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