डायबिटीज का बजट – कैसे कम करे इलाज पर होने वाला खर्च?
भारत में डायबिटीज तेजी से बढ़ता जा रहा है. आंकड़ो के हिसाब से 30 साल से अधिक उम्र का हर छठा भारतीय डायबिटीज से पीड़ित है, हालाँकि इनमे से आधो से अधिक को इसकी जानकारी भी नहीं है क्योंकि उन्होंने कभी जाँच नहीं कराई. बढती महंगाई के साथ साथ डायबिटीज पर होने वाला खर्च भी बढ़ाते जा रहा है. देशभर के विभिन्न हिस्सों से जुटाए आंकड़ो के अनुसार हर डायबिटीज का रोगी औसतन 10 हजार रुपये प्रति वर्ष डायबिटीज के इलाज पर खर्च करता है हालाँकि कुछ मरीजो में यह खर्च लाखो रुपये प्रति वर्ष तक पहुँच सकता है. सही उपचार के आभाव में डायबिटीज के कारण होने वाली हार्ट अटैक, लकवा, गैंग्रीन जैसी बिमारिया अक्सर बजट बिगाड़ देती है. इसके अलावा किडनी फेल्युअर से प्रभावित रोगियों को सालाना लाख रुपये से अधिक का खर्च डायलिसिस, दवाइया इत्यादि में आता है.
औसत आंकड़ो के अनुसार सालाना खर्च होने वाले 10 हजार रुपयों में से 4500 रुपये अस्पताल में भर्ती होने के कारण खर्च होते है. औसतन हर मरीज 3500 रुपये दवाइयों पर, 1500 रुपये जांचो पर और 1000 रुपये डॉक्टर की फीस पर खर्च करता है. इन सभी खर्चो पर गौर कर इस खर्च को कमसे कम करने की कोशीश की जा सकती है.
1.गंभीर बीमारियों के इलाज में होने वाला खर्च
डायबिटीज रोगियों को सबसे मोटा खर्चा गंभीर बीमारियों के इलाज में होता है. डायबिटीज के रोगियों को हार्ट अटैक का खतरा अन्यो के मुकाबले दुगुना होता है. परिवार में किसी को हार्ट की बीमारी होने की स्थिति में यह खतरा और भी बढ़ जाता है. इसके अलावा मोटापा, व्यायाम का अभाव, तम्बाकू का सेवन, बीडी या सिगरेट पीना, ब्लड प्रेशर हाई होना, खून में कोलेस्ट्रोल की मात्र अधिक होना, तनाव इत्यादि हार्ट अटैक का खतरा बढ़ाती है. हार्ट को रक्त पहुँचाने वाली धमनियों में सिकुडन डायबिटीज का पता लगने से भी पहली शुरू हो जाती है लेकिन अक्सर इस बीमारी का पता डायबिटीज होने के अमूमन 5 से 15 वर्ष बाद जब हार्ट अटैक आता है तभी लगता है. लगातार बढ़ी हुई ब्लड शुगर की मात्रा से कम उम्र में हार्ट अटैक की सम्भावना बढ़ जाती है.
रक्त में बढ़ी हुई शुगर की मात्र हार्ट की तरह ही शरिर की अन्य धमनियों में भी सिकुडन करती है. ब्रेन को रक्त पहुँचाने वाली धमनियों में सिकुडन या रुकाव के कारन लकवा तथा पैरो की धमनियों में रुकाव से गैंग्रीन होने की सम्भावना होती है. लकवा या गैंग्रीन एक बार होने के बाद इलाज में होने वाला खर्च तेजी से बढ़ जाता है.
बढ़ी हुई शुगर की मात्र का प्रभाव किडनी पर पड़ने से किडनी फ़ैल हो सकती है और आँखों पर पड़ने से अंधापन हो सकता है. इसी प्रकार नसों पर इसका प्रभाव पड़ने से पैरो में झनझनाहट, जलन और आखिरकर सूनापन आ जाता है. इन सभी गंभी बीमारियों में सबसे अधिक खर्च किडनी फेलियर से पीड़ित मरिजो को आता है क्योंकि उन्हें या तो किडनी बदल कर आजीवन दवाइया लेनी होती है या आजीवन डायलिसिस कराना पड़ता है.
डायबिटीज के रोगियों पर पड़ने वाला यह सबसे बड़ा बोझ अनावश्यक है और आसानी से इससे बचा जा सकता है. रक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित रखकर, ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रोल को नियंत्रण में रख कर, नियंत्रित खानपान, नियमित व्यायाम से इन सभी बीमारियों से बचना संभव है. अनुभवी विशेषज्ञ डॉक्टर इन बीमारियों के शुरुवाती लक्षणों को पहचानकर इन बीमारियों को बढ़ने से पहले रोकने में भी सहयोग कर सकते है. कोई लक्षण न होने की स्थिति में भी इन बीमारियों को शुरुवाती अवस्था में पकड़ पाने के लिए कुछ न्यूनतम आवश्यक जांचे विशेषज्ञ की सलाह से साल में एक बार कराते रहे.
दवाइयों का चयन सही न होने की स्थिति में अक्सर डायबिटीज रोगियों की शुगर काफी कम हो जाती है जिसे हाइपोग्लाइसीमिया कहते है. ऐसी स्थिति मे मरीज बेहोश भी हो सकता है और अक्सर घबराहट में मरीज अस्पताल तक पहुच जाता है, जहा उसे कई तरह की जांचो के मोटे खर्च से गुजरना पड़ता है. सही जानकारी हो तो हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षणों को पहचान कर तुरंत कुछ खाकर या ग्लूकोज पिलाकर मरीज को ठीक किया जा सकता है.
2. दवाइयों पर होने वाला खर्च
डायबिटीज के इलाज में होने वाला दूसरा मोटा खर्च दवाइयों पर होता है. डायबिटीज के रोगियों को शुगर नियंत्रित होने के बावजूद Metformin, Atorvastatin, Ramipril, Aspirin जैसी कुछ दवाइया गंभीर बीमारियों से बचने के लिए दी जाती है और इन्हें नियमित लेना चाहिए. इसके अलावा विटामिन इत्यादि की अधिकतर रोगियों को आवश्यकता नहीं होती. अलग अलग कंपनियों द्वारा बेचीं जा रही एक दवा के दाम में कई गुना तक का अंतर हो सकता है. यदि दवाइयों का खर्च आपके बजट के बाहर हो तो आप अपने डॉक्टर को जेनेरिक दवाइया या सस्ती दवाइया लिखने का आग्रह करे. दवा न लेने या नियमित न लेने से कई गुना बेहतर है की आप अपने डॉक्टर को स्पष्ट रूप से अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में बताये और उनसे केवल आवश्यक और सस्ती दवाइया लिखवा ले.
डायबिटीज के कुल 50 से भी अधिक विभिन्न प्रकार है और सभी के लिए अलग अलग तरह की दवाइया उपलब्ध है. किसी भी दवाई से शुरुवाती दौर शुगर को नियंत्रित करना आसान है लेकिन गलत दवा कुछ ही वर्षो में काम करना बंद कर देती है और अधिकतर मरीजो को बहोत जल्द इन्सुलिन इंजेक्शन लगाने की आवश्यकता पड़ती है. अनुभवी विशेषज्ञ द्वारा सही निदान कर आपके लिए सबसे उपयुक्त दवा का चयन कर इस खर्च से बचा जा सकता है. साथ ही शुगर की मात्र के अनुसार दवाइयों को नियमित बदलते रहना भी आवश्यक है.
3. जांचो पर होने वाला खर्च
डायबिटीज रोगियों द्वारा कराइ जाने वाली आधी से अधिक जांचे अनावश्यक होती है. शुगर के अलावा अधिकतर जांचे कोई लक्षण न होने की स्थिति में साल में एक बार कराना काफी होता है. विटामिन इत्यादि की जांचे अधिकतर अनावश्यक होती है. किस रोगी के लिए कौनसी जांचे आवश्यक है यह एक डायबिटीज विशेषज्ञ अधिक बेहतर जानते है. खर्च का बोझ अधिक होने पर इस विषय में भी अपने डॉक्टर को खुल कर बताये ताकि वो आपको केवल आवश्यक जांचो की ही सलाह दे. डायबिटीज रोगियों के लिए विशेष पैकेज भी उपलब्ध होते है जिनमे जांचो का खर्च आधे से भी कम हो जाता है. सरकारी अस्पताल या ट्रस्ट द्वारा चलाई लेबोरेटरी से भी जांचे करवाई जा सकती है.
4. डॉक्टर की फीस
डायबिटीज के इलाज में होने वाले कुल खर्च का यह छोटा सा हिस्सा है. लेकिन सही डॉक्टर का चयन करना बेहद आवश्यक है. डॉक्टर को केवल उसके ज्ञान और परामर्श के लिए फीस दी जाती है. एक अनुभवी और विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह आपके उपरोक्त सभी बड़े खर्चो को बहोत हद तक कम कर सकती है. फीस के आधार पर डॉक्टर का चयन करना सबसे बड़ी गलती है. हम अपनी मारुती कार की सर्विसिंग टाटा कार के सर्विस सेन्टर से नहीं कराते, न ही मोटरसाइकिल के मैकेनिक से. हम मोबाइल, कंप्यूटर इत्यादि जैसी हर मशीन केवल उसे समझने वाले मैकेनिक को ही सौंपते है लेकिन सबसे अनमोल मशीन हमारे अपने शरीर के मामले में हम किसी भी झोला छाप डॉक्टर और कई बार तो मित्रो की सलाह पर चलते है. फिर भी यदि डॉक्टर की फीस हमारे कुल खर्च में एक बड़ा हिस्सा हो तो सबसे बेहतर विकल्प सरकारी मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञ डॉक्टर द्वारा इलाज करवाना है.
एक सही डॉक्टर की नियमित सलाह लेकर डायबिटीज रोगी भविष्य में आने वाली गंभीर बीमारियों से बच सकते है, सही वक्त पर सही दवा से आप बीमारी को तेजी से बढ़ने से रोक सकते है. साथ एक विशेषज्ञ डॉक्टर आपको हाइपोग्लाइसीमिया को पहचानने, उसका तुरंत इलाज करने, पैरो की देखभाल, मशीन द्वारा शुगर नापने इत्यादि जैसी आवश्यक बाते सिखा सकता है. डायबिटीज के बजट को नियंत्रित करने का सबसे बेहतर तरीका है सही डॉक्टर का चयन करना और अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में डॉक्टर से खुल कर चर्चा करना.