टकराव के कारण और समाधान
आम आदमी पार्टी आज चर्चा का विषय बनी हुई है. इसलिए नहीं की इसका कोई नेता किसी घोटाले में पकड़ा गया या उसे किसी गंभीर आरोप में दोषी करार दिया गया. काफी समय से कोशिश कर रहा था इस विषय पर कुछ न लिखू लेकिन रहा नहीं गया इसलिए इस पुरे घटनाक्रम को अपनी नजरो से लिखने का प्रयास किया है.
अरविन्द केजरीवाल
सालो से भ्रष्ट व्यवस्था के हाथो कुंठित, निराश हो चुके भारतीयों के लिए अरविन्द एक उम्मीद है, बदलाव की उम्मीद. अरविन्द की सच्चाई, ईमानदारी, सादगी और लड़ाई के जज्बे को कोई झुटला नहीं सकता. व्यवस्था परिवर्तन के लक्ष्य को लेकर निकले इस इन्सान ने जीवन में कई उतार चढाव देखे लेकिन हर बार ये फिरसे उठ खड़ा हुआ. इस आन्दोलन और पार्टी में किसी भी कार्यकर्ता या आम आदमी के लिए सबसे आसन होता है अरविन्द से संवाद कर पाना. और यही खासियत है की आज लाखो लोग अरविन्द के साथ कंधे से कन्धा लगाये खड़े है. इस बात में कोई संकोच नहीं की अरविन्द हार मानने वालो में से नहीं. आप साथ दो या न दो वो अपनी लड़ाई जारी रखेगा.
प्रशांत भूषण
प्रशांत एक जाने माने वकील है जो पिछले कई सालो से अपनी जंग खुद लड़ रहे है. आन्दोलन और पार्टी से जुड़ने से पहले से वो PIL (पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन) के माध्यम से कई मुद्दों को उठाते रहे है. साथ ही उन्होंने कई बड़े घोटालो को क़ानूनी लड़ाई के जरिये अपने अंजाम तक पहुँचाया. प्रशांत की कभी कोई राजनैतिक महत्वाकांक्षा नहीं रही. वो सिर्फ सिद्धांतो के लिए लड़ते रहे है. आम कार्यकर्ता से उनका संवाद अक्सर नहीं होता. मैं आज तक प्रशांत भूषण से एक बार भी संवाद नहीं कर पाया और उसकी आवश्यकता भी नहीं थी.
योगेन्द्र यादव
एक जाने माने राजनैतिक विश्लेषक जिन्होंने, भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में एक नया हथियार जोड़ा – राजनीति. योगेन्द्र यादव के राजनीति को लेकर विचार चुनावी गणित या सत्ता प्राप्ति तक सिमित नहीं है. वो राजनीति को इस युग का युगधर्म मानते है. उन्होंने इस देश को एक नए तरह की राजनीति सिखाई – वैकल्पिक राजनीति, जिसमे इमानदार और साफ छबि के लोगो का राजनीति में होना मात्र बदलाव के लिए प्रयाप्त है.
तीनो अपने आप में हस्तिया है, तीनो का अपना अपना महत्व है और तीनो के अपने अपने विचार, अपनी अपनी कार्यशैली. तो फिर टकराव का कारण क्या है? मैं अक्सर कहता हु – “दुर्जनों को उनका स्वार्थ जोड़े रखता है और सज्जनों को उनके सिद्धांत साथ नहीं रहने देते”
कहा है मतभेद?
अरविन्द का लक्ष्य साफ है – वो बदलाव चाहते है, और वो भी जल्द से जल्द. जीवन केवल एक बार मिलता है और बड़े बड़े ताकतवर लोगो से लोहा लेकर बिना सुरक्षा के रहने वाले अरविन्द केवल इश्वर के भरोसे जिन्दा है. उनका अटूट विश्वास है की कोई ईश्वरीय शक्ति उनका साथ दे रही है इस आन्दोलन में. वो अपने जीते जी इस देश को बदला हुआ देखना चाहते है. अरविन्द ने 49 दिनों तक दिल्ली की सत्ता संभाली है. उन्होंने प्रत्यक्ष अनुभव कर लिया है की इस देश के हालात बदलना मुश्किल नहीं है, जरुरत है तो केवल सत्ता की. उनकी नियत साफ है, उन्हें सत्ता का कोई मोह नहीं लेकिन वो जानते है की सत्ता में रहकर की बदलाव लाया जा सकता है. अरविन्द का तरीका वर्तमान राजनीति में व्यवहारिक है. उन्हें विश्वास है की जब तक वो खुद सत्ता में है, कुछ गलत नहीं हो सकता और सत्ता में पहुँचने के लिए कुछ हद तक वो समझौता कर सकते है.
दूसरी और प्रशांत भूषण है. प्रशांत ने अपना पूरा जीवन सिद्धांतो की लड़ाई में लगा दिया. उनके लिए सिद्धांत सबसे बड़े है. प्रशांत को अरविन्द की ईमानदारी या सुझबुझ पर शक नहीं. लेकिन साथ ही उनका यह भी मानना है की इन्ही सिद्धांतो के लिए हम राजनीति में आये. वो सिद्धांतो के साथ समझौता करने के पक्षधर नहीं है. उनकी सोच भी साफ है जब तक अरविन्द खुद सत्ता में है सब कुछ ठीक है लेकिन आज यदि समझौता हुआ तो वो आगे भी जारी रहेगा. प्रशांत भूषण को भी अपनी कार्यशैली पर पूरा भरोसा है क्योंकि इन्ही सिद्धांतो के साथ उन्होंने क़ानूनी लड़ाईया लड़ी और जीती भी.
योगेन्द्र यादव का वैकल्पिक राजनीति में दृढ़ विश्वास है. उनके तर्कों से वो साबित कर देते है की सत्ता प्राप्ति के बिना भी बदलाव संभव है यदि आप इस तरह की राजनीति करो जो अन्य पार्टियों को बदलने के लिए मजबूर कर दे. योगेन्द्र की वैकल्पिक राजनीति काफी हद तक सफल रही, उसकी सफलता को भले ही हमने चुनावी सफलता के साथ जोड़ दिया हो. योगेन्द्र यादव की योजना के अनुसार अन्य पार्टिया आम आदमी पार्टी के चुनावी मुद्दे चुराने लग गई, अन्य पार्टिया मजबूर हो गई अपनी पार्टी से अच्छे और साफ छबि के लोगो को आगे करने के लिए और युवाओ का राजनीति के प्रति विश्वास बढ़ गया. यही 3 पैमाने थे योगेन्द्र यादव की वैकल्पिक राजनीति में सफलता के. योगेन्द्र यादव दीर्घकालीन बदलाव चाहते है और सिद्धांतो के साथ किया कोई भी समझौता आम आदमी पार्टी को और पार्टियों के बराबर ला खड़ा कर देगा. वैकल्पिक राजनीति का आधार है नैतिकता की वो मिसाल जो औरो को आप जैसा बनने को मजबूर कर दे.
टकराव क्यो?
इस सारी कहानी में एक और कड़ी है और वो है आम कार्यकर्ता. मैं ऐसे सैंकड़ो निस्वार्थ युवाओ को जनता हु जिन्होंने अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया केवल इस एक उम्मीद के लिए. आज इस टकराव के कारण वो कार्यकर्ता भी बंट गए है. सभी कार्यकर्ता निस्वार्थ है लेकिन इसमे कुछ है जिनका नेतृत्व के प्रति अडिग विश्वास है तो कुछ का विचारधारा में. ऐसी स्थिति में कुछ कार्यकर्ता अपने अपने प्रिय नेता की पैरवी कर रहे तो कुछ सिद्धांतो की दुहाई दे रहे है.
क्या है समाधान?
सबसे जरुरी है की चौथी कड़ी संघटित हो. अरविन्द केजरीवाल, प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव तीनो में से किसी के बारे में कोई अपमानजनक टिपण्णी करने से पहले इन्हें समझने की कोशिश करे. इस देश में महात्मा गाँधी के भी आलोचक मिल जायेंगे, लेकिन उन में से कोई भी आलोचक बापू के पैरो की धुल के बराबर भी नहीं. इस आन्दोलन में कई और केजरीवाल है, योगेन्द्र यादव है और प्रशांत भूषण है. यह समय है उन सभी के आगे आने का. वो सब मिलकर इन तीनो को साथ साथ बैठा सकते है. किसी भी तरह इन तीनो के बिच संवाद बढाया जाए. मुझे पूरा विश्वास है खुले मन के साथ संवाद के बाद यह तिकड़ी इस देश की दशा और दिशा दोनों बदल देगी.
(नोट – इस लेख में लिखे विचार मेरे व्यक्तिगत विचार है. किसी को आहत करने का उद्देश नहीं. यदि इन विचारो से कोई आहत हुआ हो तो माफ़ी चाहूँगा)