उम्मीदो की टोपी – इसे पहने नहीं, धारण करे
मार्च 2014 – एक निजी चैनल ने “जनमंच” कार्यक्रम में आम आदमी पार्टी का पक्ष रखने के लिए आमंत्रित किया था. और कार्यक्रम के लिए स्थान चुना गया था जयपुर का स्टेचू सर्किल।
शाम करीब 4:45 पर कुछ कार्यकर्ताओ के साथ वहा पहुंचा। कार्यक्रम शुरू होनेमें अभी समय था. स्टेचू सर्किल के सुन्दर लॉन पर हम लोग गपशप कर रहे थे तभी एक अधेड़ उम्र की महिला दौड़ते हुए हमारी और आयी. हांफती हुई गिड़गिड़ाने लगी
“साहब मेरी बच्ची को बचा लो”.
हाँफते और रोते हुए वो क्या कहना चाह रही थी समझना मुश्किल हो रहा था. हमने उसे कुर्सी पर बिठाया और पानी पिलाया।महिला बोलने लगी
“साहब मैंने ये ऑटो मुख्यमंत्री के निवास जाने के लिए बुक किया था लेकिन मुझे आपकी टोपी दिख गई. अब मेरा काम हो जायेगा”
उसने ऑटो वाले को 40 रुपये देकर जाने को कहा और फिर अपनी समस्या बताने लगी. उसकी बेटी को 3 दिन पहले उसकी आँखो के सामने कुछ लोग अगवा कर ले गए. 3 दिन से, गाँव में रहने वाली अकेली महिला , जयपुर शहर मेंधक्के खा रही थी – पुलिस थानो और नेताओ के घर. उसे उम्मीद थी तो केवल टोपी से. उसकी आँखे टोपी को खोज रही थी और टोपी पर नजर पड़ते ही वह रुक गई. राजस्थान में स्पष्ट बहुमत से नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री से उसे उतनी उम्मीद नहीं जीतनी इस टोपी से है. उसी कार्यक्रम में हिस्सा लेने आये कांग्रेस बीजेपी और अन्य पार्टियो के नेता भी वही थे. मीडिया वालो ने महिला केबयान लिए. कार्यक्रम के दौरान भी सत्ताधारी पक्ष और विपक्ष के बड़े नेताओ के सामने अपनी बात महिला ने बेझिजक दोहराई. हमारे कार्यकर्ताओ ने तुरंत लीगल सेल की टीम बुला लिया और उस महिला की पूरी मदद की.
कुछ दिनों बाद पिताजी को छोड़ने स्टेशन गया था. प्लेटफार्म पर अचानक एक ग्रामीण परिवेश की बुजुर्ग महिला करीब आयी और पूछा
“साहब गंगानगर जाने वाली ट्रैन कहा आएगी ?”
मेरे साथ सुनील आगीवाल जी थे और हम चुनावो सम्बंधित किसी मुद्दे पर चर्चा कर रहेथे। मैंने महिला से कहा
“माताजी मुझे जानकारी नहीं है, आप किसी ठेले वाले से या कुली से पूछ ले”
महिला बोली
“बेटा मैं तो ये टोपी देख कर आयी थी”.
उसकी इस बात ने फिर हमें जकझोर दिया, सुनीलजी उस महिला के साथ गए और उसे ट्रैन की जानकारी दिलाकर वापस आये.
ऐसे कई किस्से है. आम आदमी को इस टोपी से बहोत उम्मीदे है. इस टोपी को पहनने वाले से भी बहुत अलग अपेक्षाएं है। कई बार मुझे ईमेल आते थे
-आपकी पार्टी की गाडी दिखाई दी, और उसने सिग्नल तोड़ दिया था.
-एक कर पर केजरीवाल का बैनर लगा दिखा और बैनर से नंबर प्लेट ढकी हुई थी.
-एक टोपी वालेको हमने रास्ते पर थुंकते देखा
इस तरह की ईमेल फिर याद दिलाते थे इस टोपी को धारण करना आसान नहीं। इस टोपी को धारण करने वाले को आम आदमी, राजनीतिक सुचिता और परिवर्तन की लड़ाई का एक सिपाही मानता है. टोपी धारण करने वाला कोई खादी धारी नेता नहीं।
एक समय था जब गांधी टोपी या खादी पहनने वालो को भी जनता इसी उम्मीद और अपेक्षाओं के साथ देखती थी. कांग्रेस नेताओ ने उस टोपी और खादी को मजाक बना दिया।
पार्टी बनाने से पहले योगेन्द्र यादव ने अपने पहनावे पर जोर दिया था. और वास्तव में इस टोपी ने जनता के दिलो में जगह बना ली. पिताजी की कही एक बात याद आती है – “शिखर पर पहुँचना आसान हैटिके रहना मुश्किल”. जनता इस टोपी को उम्मीदों के शिखर पर पहुंचा दिया वहा टिके रहना इसे धारण करने वालो की जिम्मेदारी है.
“इस टोपी को पहने नहीं, धारण करे”
धारण करने का अर्थ इसे पहनने से पहले इससे जुड़े अपेक्षाएं समझ कर सुनिश्चित करे की आप उम्मीदों पर खरा उतरोगे
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