लड़ना है या सहना है, आज तुम्हे तय करना है

आन्दोलन के दिनों में लिखी एक कविता 

युवाशंक्ति है साथ खड़ी, आजादी की लडाई में
लड़ना है या सहना है, आज तुम्हे तय करना है

बेबस और लाचार जिंदगी , सालो से ही जिते आये,
उदासीनता के अन्धकार में, हर जख्म सीते आये
ऐसे ही घूंट घूंट कर क्या जीवन जीते रहना है?
लड़ना है या सहना है आज तुम्हे तय करना है

सालो तक दमन के बाद, फिर ये मौका आया है,
देशभक्त दीवानों ने, क्रांति का परचम लहराया है
अबके माँ भारती को आजाद कराके रहना है
लड़ना है या सहना है, आज तुम्हे तय करना है

देश की अवस्था पर, अफसोस तो जताया होगा
व्यवस्था को बदलने का, नुस्खा भी बतलाया होगा
बातो से आगे बढ़ चौराहों पर निकलना है
लड़ना है या सहना है आज तुम्हे तय करना है

घर परिवार, रोजी रोटी, क्या यही हमारा फ़र्ज़ है?
मत भूलो शहीदों और, भारत माँ का हम पर कर्ज है
कर्ज ये चुकावोगे या, शर्मिंदा जीते रहना है
लड़ना है या सहना है आज तुम्हे तय करना है

सर पर अन्ना टोपी और, ले लो तिरंगा हाथ में
अकेले निकलो सड़को पर, मिल जायेंगे राही साथ में
भ्रष्ट राजनेताओ को जनशक्ति दिखलाना है
लड़ना है या सहना है आज तुम्हे तय करना है

युवाशंक्ति है साथ खड़ी, आजादी की लडाई में
लड़ना है या सहना है आज तुम्हे तय करना है

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