इस आंदोलन से कई तरह के लोग अलग अलग कारणों से जुड़े थे। और समय समय पर कई लोग अपने आप को इससे अलग करते गए। राजनैतिक पार्टी बनने के बाद से चाहे किसी भी कारण से कोई भी छोड़ जाये, पार्टी के कार्यकर्ता हो या मीडिया अधिकतर एक सी प्रतिक्रिया देते है. कार्यकर्ताओ की नजर से छोड़ कर जाने वाला स्वार्थी था जो किसी पद या टिकट की लालच में आया था. मीडिया के लिए यह एक बड़ी खबर बन जाती है – “आप में बड़ी फुट”, “आप में बगावत”, “आप के बड़े फलाना नेता (चाहे उन्हें कोई जानता भी न हो) और केजरीवाल के करीबी ने पार्टी छोड़ी”. “आप” के कार्यकर्ताओ से जनता को बड़ी अपेक्षाए है. इस विषय पर एक सुन्दर सा लेख लिखा है “उम्मीदों की टोपी – इसे पहने नहीं धारण करे”. समय मिले तो पढियेगा. “आप” कार्यकर्ताओ को ऐसी घटनाओ पर तुरंत प्रतिक्रिया देने से बचना चाहिए.
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