कैसे थमेगा आरक्षण? क्या है “आप” की निति?
आरक्षण एक ऐसा जटिल विषय है जिस पर अधिकतर राजनैतिक पार्टिया कुछ भी कहने से बचती है. बीजेपी को सालो से ब्राह्मण बनियों की पार्टी माना जाता रहा है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की केंद्र में सरकार बनी तब उम्मीद जगी थी की हर 10 वर्ष बाद, फिर दस वर्षो के लिए बढाई जाने वाले आरक्षण की समयसीमा को अब विराम लगेगा. किन्तु जातियों के आधार पर राजनीति करने वाले किसी भी दल से ऐसी उम्मीद करना मुर्खता होगी. दस वर्षो के लिए शुरू किया आरक्षण अब हमारी व्यवस्था का एक हिस्सा बन गया है, जिसके कम होने की किसीको उम्मीद नहीं, उलटे चुनावी फायदों के लिए बार बार राजनैतिक दल नए नए आरक्षण की घोषणा जरुर करते आये है.
आरक्षण की शुरुवात
हमारा देश कई सालो तक छुआ छुत का शिकार रहा. समाज की कुछ जातिया पीढ़ी दर पीढ़ी उपेक्षित रही. उन्हें अन्य जातियों की तरह शिक्षा नहीं मिल पाई. पीढ़ी दर पीढ़ी वह अपना वंशानुगत रोजगार करते आये. सामाजिक उपेक्षा और शिक्षा के अभाव में वो कभी दरिद्रता से मुक्त नहीं हो पाए. भारत आजाद हुआ, और भारत के हर नागरिक को समानता का अधिकार मिला. यह हर भारतीय की नैतिक जिम्मेदारी है की हम समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चले, कोई भी समाज केवल संसाधनों की कमी के कारण पीछे न रह जाये. कई पीढ़ियों से उपेक्षित रहे समाज को मुख्य धारा से जोड़ना आसान कार्य नहीं था. सदियो से सामाजिक व्यवस्था में जड़े जमा चुकी छुआछुत की बीमारी को केवल कानून के सहारे तुरंत ख़त्म करना भी आसान नहीं था. पीछड़े वर्ग को शिक्षा का अवसर मिल पाए इसलिए शिक्षा में आरक्षण की व्यवस्था की गई, उन्हें नौकरी मिल पाए इसलिए सरकारी नौकरी में आरक्षण दिया गया. संविधान निर्माता बाबासाहेब आंबेडकर को विश्वास था की इस व्यवस्था से अगले दस सालो में सभी पिछड़ी जातीया मुख्यधारा में शामिल हो जाएगी और इसके बाद शायद आरक्षण की आवश्यकता ही न हो.
आरक्षण का लाभ
अपेक्षानुसार आरक्षण की व्यवस्था का फायदा हुआ, लोग शिक्षित होने लगे, सरकारी नौकरिया मिलने लगी, कई लोग बड़े पदों पर पहुंचे. फिर सामाजिक उत्थान के पावन लक्ष्य से शुरू की गई इस व्यवस्था का राजनैतिक उपयोग शुरू हुआ. पूर्व प्रधानमंत्री वी पी सिंह ने मंडल आयोग की शिफरिसे लागु कर अन्य पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू कर दी. उस दौरान आरक्षण के पक्ष और विपक्ष में हुए आंदोलनों में कई युवाओ ने अपनी जान गवां दी। समानता के लक्ष्य को लेकर शुरू हुई आरक्षण की व्यवस्था अब समाज को बांटने लगी.
आरक्षण के वर्तमान लाभार्थी
आरक्षण पर कोई भी राय बनाने से पहले इस हिस्से को समझना बेहद जरुरी है. मेडिकल, इंजीनियरिंग जैसी उच्च शिक्षा के दाखिले की प्रणाली का उदहारण लेते है. वहा 15% स्थान अनुसूचित जाती के लिए आरक्षित है. 100 में से 15 सिट केवल अनुसूचित जाती के छात्रो को दी जा सकती है. इन 15 स्थानों के लिए प्रतियोगिता में वो हर छात्र है जो अनुसूचित जाती में जन्मा है. अनुसूचित जाती में जन्मे छात्रो में से वो छात्र जिनके माता पिता खुद डॉक्टर, इंजिनियर, वकील या किसी बड़े सरकारी पद पर है उन्हें निश्चित अपनी ही जाती के अन्य छात्रो के मुकाबले अधिक सुविधाए मिलती है, वो केवल जाती से पिछड़े हुए, वास्तव में नहीं. प्रतियोगिता में ऐसे छात्र वास्तव में पिछड़े हुए छात्रो से आगे निकल जाते है और आरक्षित स्थान उन्हें मिल जाता है. वास्तव में पिछड़े हुए परिवार पिछड़े ही रह जाते है.
वर्तमान स्थिति में आरक्षण का अधिक से अधिक लाभ केवल उन्हें मिलता है जो केवल जाती से पिछड़े हुए है वास्तव में नहीं. वास्तव में पिछड़े हुए परिवार आज भी समानता के अधिकार से वंचित है और उन्हें मुख्य धारा में लाने की राजनैतिक इच्छा शक्ति किसी पार्टी के पास नहीं है.
आरक्षण की व्यवस्था होने के बावजूद, केवल जाती से पिछड़े और अन्य सामाजिक पैमानों पर विकसित गिने चुने परिवार इसका लाभ ले पा रहे और वास्तव पिछड़ा हुआ तबका और पिछड़ता जा रहा है. अमानवीय स्थितियों में रहने वाला गरीबी और अशिक्षा से पीड़ित यह तबका तभी मुख्य धारा में आ पायेगा जब उनके समजातीय परिवार जो आरक्षण का लाभ लेकर मुख्य धारा से जुड़ चुके है, आरक्षण का लाभ न ले. जब तक इस व्यवस्था में सुधार नहीं होगा, समाज का एक बड़ा हिस्सा हमेशा के लिए पिछड़ा ही रहेगा.
क्या है आम आदमी पार्टी की आरक्षण निति?
आम आदमी पार्टी के विज़न डॉक्यूमेंट में आरक्षण निति का साफ उल्लेख किया हुआ है और यही एकमात्र उपाय है समाज के सभी अंगो को मुख्य धारा से जोड़ने का, देश में समानता स्थापित करने का. समाज में उपेक्षित वर्ग को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए केवल आरक्षण काफी नहीं है. उन्हें बेहतर सुविधाए देनी होगी. साथ ही यह सुनिश्चित करना होगा की आरक्षण का लाभ लेकर संपन्न हो चुके परिवारों को आरक्षण का लाभ न मिले. केवल यही एक तरीका है जिससे उपेक्षित समाज के हर परिवार को कभी न कभी आरक्षण का लाभ मिलेगा. इसी व्यवस्था से एक दिन वो समय आएगा जब ऐसा कोई परिवार नहीं होगा जिसने आरक्षण का लाभ न लिया हो, जो संपन्न न हो।
समाज में समानता स्थापित करने का यह तरीका कोई नया अविष्कार नहीं है। 10 साल पहले भी एक चर्चा के दौरान मैंने अपने पिताजी को यही कहते सुना था. फिर क्या कारण है की किसी अन्य राजनैतिक पार्टी ने इस विषय में नहीं सोचा? उनके लिए आरक्षण एक राजनैतिक हथियार है, समाज को बांटने और वोट बटोरने का.
आजादी के 67 वर्षो बाद भी यदि हमारे देश का कोई वर्ग पिछड़ा रहता है तो यह बेहद शर्मिंदगी के बात है. राजनैतिक पार्टियोंको आरक्षण का एक राजनैतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करने के बजाय समाज में व्याप्त असमानता की इस बीमारी का जड़ से इलाज करने के बारे में सोचना चाहिए. वर्तमान में इस तरह की सोच और इच्छाशक्ति केवल आम आदमी पार्टी में नजर आती है.
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