15 फरवरी को होगा केजरीवाल का शपथ ग्रहण समारोह
चौंकिए मत, मैं कोई भविष्यवक्ता नहीं हु, न ही इस शीर्षक के पीछे कोई तर्क है. आज दिल्ली चुनावो को घोषणा हुई तो एक साल पहले की घटनाये आँखों के सामने आ गई. कई सालो बाद देश में बड़ा आन्दोलन हुआ, आन्दोलन के बाद पार्टी बनी, और राजनैतिक पार्टियों की लाख कोशिशो के बावजूद, बिना किसी अनुभव, बिना पैसे, बिना जाती- धर्म, अपराधियों का सहारा लिए आम आदमी पार्टी ने चुनाव लड़ा और जीता भी. ऐन चुनावो से पहले मतदाताओ को बरगलाने के एक और कोशिश हुई – मीडिया का सहारा लेकर दिखाया गया की इस पार्टी को केवल 2-8 सिट मिलेगी. इसका प्रभाव कुछ मतदाताओ पर जरुर पड़ा और यह पार्टी बहुमत से पीछे रह गई. सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी ने सरकार बनाने की अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड लिया. कांग्रेस हो चाहे बीजेपी और साथ ही मीडिया हर कोई कह रहा था आम आदमी पार्टी केवल आन्दोलन कर सकती है सरकार नहीं चला सकती. फिर जनता से राय शुमारी का दौर शुरू हुआ. जनता से आदेश मिलने के बाद केजरीवाल ने दिल्ली में सरकार बनायीं.
इसके बाद 49 दिनों तक जिस कुशलता के साथ केजरीवाल ने सरकार चलाई उसने दिल्ली ही नहीं पुरे देश की राजनीति को हिला कर रख दिया. वो 49 दिन इतिहास में हमेशा दर्ज रहेंगे. 28 दिसंबर (जिस दिन केजरीवाल ने शपथ ली थी) से रोजाना उन 49 दिनों के दौरान इस सरकार की दैनिक उपलब्धियो पर एक लेख लिख रहा हु. लेख लिखते समय अहसास हो रहा है की पिछले 68 सालो में जो कोई सरकार नहीं कर पाई इस सरकार ने चंद दिनों में कर दिखाया. इस अनुभव के बाद समझ आया की वास्तव में सरकार चलाना उतना मुश्किल नहीं जितना नेता हमें बताते आये.
दिल्ली को मुफ्त पानी देने में 300 करोड़ का अतिरिक्त बोझ सरकार पर पड़ेगा, ये तो सब नेता कहते आये, किसी ने ये नहीं कहा की इतना ही खर्च हम 70 लोगो की सुरक्षा में आता है. केजरीवाल ने कहा सुरक्षा की हमें जरुरत नहीं, जनता को पानी की जरुरत है, आसानी से निर्णय हो गया, वो भी शपथ लेने के तीसरे ही दिन. दिल्ली वालो को बिजली पर सब्सिडी देने से सरकार पर कुछ हज़ार करोड़ का खर्च बढेगा ये तो सबने बताया, लेकिन बिजली कंपनियों का CAG ऑडिट हो सकता है, उनके द्वारा बताये गए झूटे आंकड़ो की पोल खुल सकती है और इस तरह बिना सब्सिडी भी बिजली के दाम कम हो सकते है ये किसी ने नहीं बताया. केजरीवाल ने बिजली के दाम आधे कर दिए और कंपनियों के ऑडिट के आदेश जारी कर दिए सरकार संभालने के चौथे दिन. भ्रष्टाचार की बाते सभी पार्टिया करती है लेकिन देश में ऐसी एक भी पार्टी नहीं जिसपर भ्रष्टाचार का आरोप न लगा हो सिवाय आम आदमी पार्टी के. केजरीवाल की सरकार बनाने के तीसरे दिन मीडिया द्वारा कराये सर्वे में पता लगा की दिल्ली से भ्रष्टाचार ख़त्म हो गया. केवल केजरीवाल के नाम का इतना असर. शायद इसलिए की रिश्वतखोर भी जानते है ये बिकने वालो में से नहीं.
49 दिनों में और बहोत कुछ हुआ, उस पर लेख लिखना जारी है. फिर बारी आई मुख्य चुनावी वादे की – जनलोकपाल बिल. इस बिल को कांग्रेस और बीजेपी ने विधानसभा में पेश तक नहीं होने दिया. केजरीवाल सरकार को लिखित में इस मुद्दे पर समर्थन देने वाली कांग्रेस भी बीजेपी के साथ हो गई और दोनों ने मिलकर कहा हम 42 मिलकर इसे पास नहीं होने देंगे. बहाना था की यह प्रक्रिया असवैधानिक है. इससे पहले कई बिलों पर इस तरह के सवाल उठाये गए, कइयो पर चर्चा हुई और पास भी हुए. कई ऐसे भी है जिन्हें पास होने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने असंवैधानिक करार दिया. ताजा उदहारण है मोदी सरकार द्वारा किसानो की भूमि हड़पने के लिए लाया गया आर्डिनेंस जो की पूरी तरह असंवैधानिक है. लेकिन जनलोकपाल बिल विशेष था. केजरीवाल ने घोषणा कर दी थी की यदि मैं दिल्ली की जनता को जनलोकपाल न दे पाऊ तो इस्तीफा दे दूंगा. काग्रेस और बीजेपी के लिए यही मौका था देशभर में चल रही केजरीवाल लहर को रोकने का. यदि बिल पेश न होने के बावजूद केजरीवाल सत्ता नहीं छोड़ते तो कांग्रेस बीजेपी को मौका मिल जाता केजरीवाल को झुटा साबित करने का, अपनी तरह सत्ता का लालची साबित करने का. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. केजरीवाल ने विधानसभा में एक भावुक भाषण देकर जनता को दिए वादे पुरे न कर पाने के कारण नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया. इसके बाद जो हुआ वो और भी चौकाने वाला है. देश में शास्त्रीजी के बाद केजरीवाल शायद पहले नेता थे जिन्होंने राजनीति में रहते हुए नैतिक जिम्मेदारी को समझा. अक्सर लोग विफलताओ पर इस्तीफा मांगते है लेकिन केजरीवाल के मामले में उल्टा हुआ, इस्तीफा देना मानो उसका सबसे बड़ा अपराध हो गया. केजरीवाल का इस्तीफा एक मिसाल थी. एक मौका था इस देश की राजनीति से विलुप्त हो चुकी नैतिकता को वापस लाने का, सत्ता में आने के बाद जनता को किये वादों को भूलने वाले नेताओ से इस्तीफे मांगने का. लेकिन लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई और केजरीवाल को भगौड़ा घोषित कर दिया.
केजरीवाल ने इन 49 दिनों में पीढियों से राजनीति करने वाले नेताओ को राजनीति सिखा दी थी, मीडिया में अब नैतिकता पर बहस होने लगी थी, वैकल्पिक राजनीति पर बहस होने लगी थी. कोई मुख्य मंत्री केजरीवाल की तरह बंगला लेने से मना कर रहा था तो कोई सुरक्षा लेने से. कई राज्यों में केजरीवाल के तर्ज पर बिजली के दर कम करने की बाते होने लगी थी. गठजोड़ और सत्ता की सौदेबाजी में माहिर पार्टिया सौदेबाजी करने से बच रही थी. देश की राजनीति पूरी तरह बदल रही थी. सत्ता नेताओ के हाथो से खिसक कर आम जनता के हाथो आ रही थी.
और फिर शुरू हुआ पानी की तरह पैसे बहाकर केजरीवाल को बदनाम करने का दौर. लक्ष्य साफ था जनता के दिमाग से वैकल्पिक राजनीति, स्वराज, नैतिकता जैसी बातो को बाहर निकालना, 49 दिनों की उपलब्धियों को झुटलाना. काफी हद तक इन प्रयासों पर राजनैतिक पार्टिया सफल भी रही. लेकिन यह सफलता उन्हें वही मिली जहा जनता केजरीवाल को केवल मीडिया के माध्यम से जानती है, मीडिया जब उसके धरने को आन्दोलन कहे तो आन्दोलन मान लेती है और वही मीडिया उसे अराजकता कहे तो उसे अराजक मान लेती है. लेकिन देश का एक हिस्सा है जो इस बहकावे में नहीं आ सकता – दिल्ली. दिल्ली की जनता ने वो 49 दिन देखे है. सारे प्रयासों के बावजूद दिल्ली के दिल में सिर्फ एक ही नाम है – केजरीवाल. सत्ता के दुरुपयोग की पराकाष्टा करते हुए देश भरे के चुने हुए जनप्रतिनिधियों को दिल्ली में प्रचार कार्य के लिए लगाया गया. सरकार चलाने की जिम्मेदारी निभाने के बजाय केन्द्रीय मंत्री दिल्ली में प्रचार के लिए उतरे, अपने क्षेत्र के लोगो की समस्याए सुलझाने के बजाये 200 सांसद दिल्ली में प्रचार के लिए लगाये गए. लेकिन वहा भी मात खानी पड़ी. बीजेपी की जनसभाए खाली पड़ी रही, वही आम आदमी की सभाओ में बैठने को जगह नहीं मिली.
और फिर अंतिम प्रयास, प्रधानमत्री पद की गरिमा का ख्याल किये बगैर मोदीजी ने रामलीला मैदान से केजरीवाल को खूब कोसा. मौका था की मोदीजी पिछले 6 महीनो में अपनी उपलब्धियों को गिनाते, दिल्ली वालो के लिए अपनी पार्टी की नीतिया बताते. लेकिन उन्होंने उस मंच से केजरीवाल को अराजक और नक्सली कह कर संबोधित किया. उनके इस कथन पर बाहर से बसों में भर कर बुलाये कार्यकर्ताओ ने भले तालिया बजायी हो, दिल्ली की जनता इसे बरदाश्त नहीं करेगी.
आज घोषणा हुई दिल्ली चुनावो की, 7 फ़रवरी को मतदान होगा और 10 फ़रवरी को नतीजे आयेंगे. फिर वही 14 फ़रवरी जब गन्दी राजनीति के सामने नैतिकता को झुकना पड़ा था. मुझे विश्वास है की शपथ ग्रहण 15 फ़रवरी को होगा. 14 फ़रवरी 2014 को गन्दी राजनीति की भेट चढ़ा वैकल्पिक राजनीति का दौर 15 फ़रवरी की सुबह से फिर शुरू होगा. और इस बार हमेशा के लिए. दिल्ली से लगी यही बदलाव की चिंगारी पुरे देश की राजनीति को साफ कर देगी. वो 49 दिन शृंखला का अंतिम लेख मैं 14 फ़रवरी 2015 को प्रकाशित करूँगा और मुझे विश्वास है 15 फ़रवरी को प्रकाशित होगा – “वैकल्पिक राजनीति का आगाज”