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केजरीवाल की गिरफ़्तारी – ग़ुलामी का आग़ाज़

Phot Credit – indianexponent.com

आज कई वर्षों बाद ब्लॉग लिख रहा हूँ और इसकी प्रेरणा मिली केजरीवाल की गिरफ़्तारी से। मैं केजरीवाल का भक्त नहीं हूँ, आलोचक हूँ। और केजरीवाल का आलोचक बनने का कारण भी उनका भक्तिवाद को बढ़ावा देना था। अन्ना आंदोलन से आम आदमी पार्टी तक के सफ़र में जीवन के 5 साल बिताये, उसके बाद 1-2 साल अपने आप को समेटने में लगे और आज अपनी पारिवारिक और व्यावसायिक ज़िम्मेदारीयो में मशगूल हूँ। राजनीति से रुचि ख़त्म नहीं हुई लेकिन अब उतना मासूम भी नहीं हूँ। इसलिए राजनीति को दूर से देखता हूँ और एक आम लेकिन रोज़ी रोटी की समस्या से मुक्त नागरिक की तरह कभी कभार सोशल मीडिया पर अपने विचार लिखता रहता हूँ। 

केजरीवाल गिरफ़्तार हो गया तो क्या आफ़त आ गई? 

समस्या केजरीवाल की गिरफ़्तारी नहीं है, उसके पहले भी आम आदमी पार्टी के कई नेता गिरफ़्तार हुए। आम आदमी पार्टी ही नहीं विपक्षी दलों के कई नेता और एक प्रदेश के मुख्यन्त्री भी गिरफ़्तार हुए। फिर केजरीवाल की गिरफ़्तारी में ऐसा ख़ास क्या है? एक तो भले उनका बड़ा आलोचक हूँ लेकिन उनको क़रीब से देखा है। वो क्या कर सकते और क्या नहीं इससे काफ़ी हद तक वाक़िफ़ हूँ। लेकिन ये तो व्यक्तिगत कारण रहा, इसके लिए मैं ब्लॉग नहीं लिखता। कारण इससे बहुत बड़ा है। 

आपने शायद वो मेंढक वाली कहानी पढ़ी या सुनी होगी। संक्षेप में दोहरा देता हूँ। इसे बोइलिंग फ्रॉग सिंड्रोम कहा जाता है। यदि किसी मेंढक को उबलते पानी में डाल दिया जाये तो वो उछलकर बाहर आ जाएगा। लेकिन यदि उसे गुनगुने पानी में डाल कर धीरे धीरे पानी को उबाला जाये तो उसे ख़तरे का अहसास नहीं होगा। और जब उसे एहसास होने लगेगा तब तक वो इतना कमजोर हो जाएगा कि कुछ नहीं कर पाएगा और तड़प तड़प कर दम तोड़ देगा। असल में हम सभी उस बोइलिंग फ्रॉग सिंड्रोम का शिकार है। पिछले 10 वर्षों में धीरे धीरे उबाले जा रहे है। केजरीवाल की गिरफ़्तारी उस बोइलिंग पॉइंट की तरह है। यदि इस वक्त बाहर नहीं निकले तो मौक़ा नहीं मिलेगा। 

आपमें से अधिकांश अब तक मेरे बारे में राय बना चुके होंगे, कुछ आगे पढ़ना चाहेंगे और कुछ यही पर मुझे गाली देकर या ज्ञान देकर आगे बढ़ना चाहेंगे। मेरे बारे में  राय बनाना आप का अधिकार है, मेरी सलाह है कि उस अधिकार का प्रयोग फिर कभी कर ले आज अपनी बुद्धि और अपने विवेक का इस्तेमाल कर आत्मचिंतन करे। अपने आप से कुछ सवाल करे। 

 क्या इस देश का सबसे बड़ा भ्रष्ट नेता केजरीवाल है? क्या सत्ताधारी पक्ष के सभी नेता पाक साफ़ है? क्या हमारे प्रधान मंत्री वास्तव में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं? यदि हा तो क्यों कारवाही नहीं होती उनकी पार्टी या उनके गठबंधन से जुड़े किसी नेता के ख़िलाफ़? कैसे उनकी पार्टी में शामिल होते ही सारे पाप धुल जाते है, सारे मामले रफ़ा दफ़ा हो जाते है? 

मेरे विचारों से असहमत होने के बावजूद यदि आप यहाँ तक पढ़ चुके है, मतलब आप ये तो मानते है की ये लड़ाई भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ नहीं है। तो फिर? सत्ता में बने रहने के लिए? अपने अच्छे कामों को पूरा करने के लिए सत्ता में बने रहना ज़रूरी है और सत्ता में बने रहने के लिए समझौते करने पड़ते है। यही तर्क मैंने सुने थे जब केजरीवाल दूसरी बार 70 में से 67 विधायकों के साथ चुनाव जीतकर मुख्यमन्त्री बने थे और तब मैंने उनका विरोध किया था। आज जिनके विरोध में लिख रहा हूँ वो तो देश ही नहीं दुनिया सबसे शक्तिशाली लोगो में से है। 

सत्ता में बने रहने के लिए उन्हें किसी समझौते की ज़रूरत नहीं है। उन जैसा प्रतिभाशाली नेतृत्व इस देश को मिला ये हमारा सौभाग्य है। आज यदि वो अपनी पार्टी और अपने गठबंधन के सभी भ्रष्ट नेताओ को जेल में डाल दे तो भी पूर्ण बहुमत की सरकार बनायेंगे।सरकार बनाने के लिए 400 के पार जाना ज़रूरी नहीं है, उसके लिए 272 काफ़ी है। एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ज़रूरी है मज़बूत विपक्ष का होना। उनका लक्ष्य केवल सत्ता में दोबारा आना नहीं है, बल्कि विपक्ष को पूरी तरह साफ़ कर देना है। बोइलिंग फ्रॉग सिंड्रोम के कारण हमें ये महसूस नहीं हो रहा लेकिन आज विपक्षी नेताओ के सामने दो ही रास्ते है – भारतीय जानता पार्टी में शामिल हो या जेल जाओ। ख़ैर ये तो आप सबने भी अब तक समझ लिया होगा। 

विपक्ष को ख़त्म करने में बुराई भी क्या है। सारे विपक्ष में भ्रष्ट, गुंडे, अपराधी, अवसरवादी और परिवारवादी लोग बैठे है। फिर ऐसे लोगो को अपनी पार्टी में शामिल ही क्यों किया जाये? पिछले 10 वर्षों का इतिहास देखे तो आज भाजपा में शायद आधे नेता ऐसे है जो कोंग्रेस या किसी और पार्टी को छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए। ऐसे लोगों को पार्टी में शामिल करने के पीछे क्या तर्क हो सकता है? ताकि उन्हें नियंत्रित किया जा सके। ऐसे कई तर्क आपके पास होंगे। यही उपलब्धि है चौथे स्तंभ और सोशल मीडिया की। कुछ तो कारण है जिसके लिये उसे चौथा स्तंभ कहा जाता है। वो सरकारी मुखपत्र नहीं होता बल्कि सरकार को आइना दिखाने वाला उससे सवाल पूछने वाला, लोकतंत्र का एक मज़बूत स्तंभ होता है। आपने कितनी बार देखा टीवी पर मीडिया को सरकार से सवाल पूछते हुए? या अब तक आप मान चुके है कि उसका काम ही है विपक्ष पर आरोप लगाना, और सरकार का बचाव करना? मीडिया सारे दिन आपको उलझाए रखता है हिंदू – मुसलमान, हिंदुस्तान – पाकिस्तान की चर्चाओं में।

यदि विरोध करने वाला कोई ना हो तो लोकतंत्र रातोंरात तानाशाही में बदल जाता है और इतिहास में इसके कई उदाहरण है। आज भी दुनिया में ऐसे कई देश है जहां चुनाव केवल औपचारिकता है। संभव है उनमें से कुछ देश हमारे देश के मुक़ाबले ज़्यादा समृद्ध हो, कुछ कंगाल भी है। उनके देश की आर्थिक स्थिति चाहे जैसी हो उन सभी देशों के नागरिक, नागरिक नहीं ग़ुलाम है। 

बोइलिंग पॉइंट नज़दीक है, आज समय है इस पानी से बाहर छलांग लगकर अपने लोकतंत्र को बचाने का, अपनी आज़ादी को बचाने का। बाक़ी आप समझदार है। 

Phot Credit – indianexponent.com

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