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इस्तीफे के पहले हुआ था जनमत। 62 % की राय इस्तीफे के पक्ष में

voteइतिहास का शायद सबसे चर्चित इस्तीफा था – केजरीवाल का इस्तीफा। चर्चित होना स्वाभाविक भी था। शास्त्रीजी के बाद भारतीय राजनीति में शायद यह पहला मौका था जब किसी राजनेता ने नैतिक आधार पर इस्तीफा दिया हो। और केजरीवाल शायद दुनिया में अकेले व्यक्ति जिन्हें इस्तीफा देने के लिए कोसा जाता है, जिनसे जनता इस्तीफा देने का कारण नाराज है ऐसा बताया जाता है।

वो 49 दिन” शृंखला पर लिखते समय पता लगा की केजरीवाल के इस्तीफे से पहले NDTV पर जनमत कराया गया था जिसमे 18000 से जादा लोगो ने अपनी राय दी थी। इस जनमत पर चर्चा क्यों नहीं हुई इसका उत्तर शायद NDTV ही दे पाये।

केजरीवाल ने इस्तीफे के लिए सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगी। उन्होंने माना की इस्तीफा देने से पहले जनता की राय लेनी चाहिए थी। मेरी व्यक्तिगत राय में केजरीवाल का इस्तीफा एक मौका था इस देश की राजनीति से विलुप्त हो चुकी नैतिकता को दोबारा स्थापित करने का, सत्ता मिलते ही चुनावी वादों को भुला देने वाले नेताओ पर दबाव बनाने का।

जंतर मंतर पर अनशन समाप्त कर राजनैतिक विकल्प पर जनता की राय मांगी गई, और चंद घंटो में हर चैनल अपना अपना जनमत कराने लगा। दिसंबर 2013 में केजरीवाल पर कांग्रेस से समर्थन लेकर सरकार बनाने का दबाव बनने लगा और फिर हर चैनल जनमत कराने लगा। विधानसभा का सत्र शुरू होने से पहले ही केजरीवाल ने साफ कर दिया था की जन लोकपाल पास न करा पाये तो वो इस्तीफा दे देंगे। इस बार क्यों मीडिया ने जनता की राय नहीं ली। या जिन्होंने ली, उन्होंने क्या नतीजे जनता के बिच रखे?

NDTV पर केजरीवाल के इस्तीफे से चंद घंटो पहले जनता की राय ली गई थी। कुल 18962 लोगो ने अपनी राय दी। जिसमे से 61.43% लोग चाहते थे की जनलोकपाल पास न करा पाने की स्थिति में केजरीवाल को इस्तीफा दे देना चाहिए। एक मित्र मनोज सुनिया ने ट्विटर पर जानकारी दी की ऐसा सर्वे आज तक ने भी करवाया था जिसमे 83% जनता इस्तीफे के पक्ष में थी। ऐसे ही एक सर्वे जो ABP न्यूज़ ने कराया था में भी 67% प्रतशत लोगो ने कहा था की तुरंत चुनाव हुए तो वो “आप” को वोट देंगे. 

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वास्तविकता में केजरीवाल इस्तीफा दे या न दे, उन्हें आलोचना झेलनी ही थी। कांग्रेस समर्थन लेने से इंकार करने पर जो मीडिया केजरीवाल को सरकार चलाने में असमर्थ बता रहा था वही आज पूछता है आपने समर्थन क्यों लिया?

49 दिनों में केजरीवाल सरकार ने वो सब कर दिखाया जिसे कांग्रेस, बीजेपी और मीडिया सभी असंभव बताते आये। पानी मुफ़्त हो गया, बिजली सस्ती हो गई, भ्रष्टाचार ख़त्म हो गया। समस्या और बढ़ गई जब केजरीवाल शिला दीक्षित, वीरप्पा मोइली, मुरली देवरा, मुकेश अम्बानी जैसे ताकतवर लोगो के खिलाफ FIR करवाने लग गए। यही वो समय था जब पूरा उद्योग जगत नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में लगा था और केजरीवाल इसमें एक बड़ी चुनौती बन गए थे।

यही मौका था व्यवस्था को पूरी तरह बदलने को निकले केजरीवाल को रोकने का। केजरीवाल जनलोकपाल पास न करा पाने की स्थिति में इस्तीफा देने की बात कह कर फंस गए। अब केजरीवाल चाहे जो करे उनको कठघरे में खड़ा करना तय था। इस्तीफा देने की स्थिति में केजरीवाल को जिम्मेदारी से भागने वाला (भगौड़ा) घोषित किया जायेगा। और इस्तीफा न देने की सूरत में सत्ता का लालची और अपनी बात से मुकरने वाला जिसने जन लोकपाल पास न करा पाने के बावजूद कुर्सी नहीं छोड़ी।

वो देश में राजनैतिक बदलाव का दौर था। देश के बड़े बड़े नेता खुद को केजरीवाल जैसा साबित करने में लगे थे। दिल्ली में बैठे हुए केजरीवाल अन्य राज्यो की सरकारो के निर्णयो को प्रभावित कर रहे थे। ये सब आम आदमी के भले ही हितो में था लेकिन पैसे से सत्ता और सत्ता से पैसा कमाने वालो की कुर्सिया डगमगाने लगी थी।

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