Politics 

“आप” से आउट होते नेता

AAP

अप्रैल 2011 में शुरू हुए अन्ना आंदोलन ने 16 अगस्त 2011 तक एक विशाल जनांदोलन का रूप ले लिया। तत्कालीन UPA सरकार ने जनभावनाओं को समझने में बड़ी भूल कर दी। 16 अगस्त तक अधिकतर मध्यमवर्गीय, नौकरीपेशा युवाओ का इस आंदोलन में योगदान सिमित था। सोशल मीडिया और TV के माध्यम से वो इस आंदोलन से जुड़े थे। 16 अगस्त की सुबह सरकार ने अहंकार और असंवेदनशीलता की सभी हदे पार कर दी। आंदोलन के शीर्ष नेता 74 वर्षीय गांधीवादी बुजुर्ग अन्ना हज़ारे को गिरफ्तार कर लिया। ये वो समय था जब मानो पूरा देश सडको पर आ गया। वही मौका था जब मैंने भी रुग्णसेवा के अपने धर्म से जादा जरुरी आंदोलन स्थल पर पहुंचना समझा।

इस आंदोलन से कई तरह के लोग अलग अलग कारणों से जुड़े थे। और समय समय पर कई लोग अपने आप को इससे अलग करते गए। राजनैतिक पार्टी बनने के बाद से चाहे किसी भी कारण से कोई भी छोड़ जाये, पार्टी के कार्यकर्ता हो या मीडिया अधिकतर एक सी प्रतिक्रिया देते है। कार्यकर्ताओ की नजर से छोड़ कर जाने वाला स्वार्थी था जो किसी पद या टिकट की लालच में आया था। मीडिया के लिए यह एक बड़ी खबर बन जाती है – “आप में बड़ी फुट”, “आप में बगावत”, “आप के बड़े फलाना नेता (चाहे उन्हें कोई जानता भी न हो) और केजरीवाल के करीबी ने पार्टी छोड़ी”. “आप” के कार्यकर्ताओ से जनता को बड़ी अपेक्षाए है। इस विषय पर एक सुन्दर सा लेख लिखा है “उम्मीदों की टोपी – इसे पहने नहीं धारण करे”। समय मिले तो पढियेगा। “आप” कार्यकर्ताओ को ऐसी घटनाओ पर तुरंत प्रतिक्रिया देने से बचना चाहिए। छोड़नेवाले अलग अलग कारणों से छोड़ते है। प्रतिक्रिया देने से पहले यह समझना जरुरी है की उस व्यक्ति ने पार्टी क्यों छोड़ी।

आंदोलन और फिर इससे जन्मी राजनैतिक पार्टी से अपने आप को अलग करने वालो की कई श्रेणिया है। उन सभी पर मेरा आंकलन –

1) UPA के हितैषी –

इस आंदोलन में जुड़े कुछ लोग ऐसे भी थे जो उस समय भी UPA के हितैषी थे। जैसे जैसे आंदोलन देशव्यापी होता गया, या तो उनका असली चेहरा सामने आ गया या वो खुद आंदोलन से दूर हो गए। इस श्रेणी में मुख्य नाम है स्वामी अग्निवेश जो तत्कालीन केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल से फोन पर बात करते हुए कैमरे पर पकड़े गए थे। मुफ़्ती शमीम काज़मी कोर कमिटी की बैठक में छुपकर बातो को रिकॉर्ड करते पकड़े गए थे।

2) गैर राजनैतिक आंदोलनकारी

यह आंदोलन शुरू से ही गैर राजनैतिक था। किसी को उम्मीद नहीं थी की इससे कभी राजनीतिक पार्टी बनेगी। आंदोलन से राजनीति में उतरने का निर्णय जिन स्थितियों में लिया गया उसके विषय में मैंने विस्तार से इस लेख में लिखा है।
सभी स्तरों पर कई कार्यकर्ता इसके लिए तैयार नहीं थे। बार बार हुई बैठको के बाद जब वैकल्पिक राजनीति का चित्र साफ हुआ तो अधिकतर लोग पार्टी के साथ जुड़ गये। वैकल्पिक राजनीति, जिसने गैर राजनैतिक आंदोलनकारियो को राजनीति में उतारा के विषय में मैंने इस लेख में लिखा है. कुछ ऐसे कार्यकर्ता थे जिन्हें पार्टी से जुड़ने का निर्णय लेने में समय लगा। दिसंबर 2013 में पार्टी को मिली अप्रत्याशित सफलता के बाद कई साथियो को विश्वास हो गया की बिना धन, बिना राजनैतिक पृष्टभूमि, अपराधियो या जाती धर्म का आधार लिए भी राजनीति की जा सकती है। देश में राजनैतिक बदलाव का दौर था। बड़ी संख्या में गैर राजनैतिक आंदोलन कारी साथी पार्टी से जुड़ गए।
आज भी कुछ ऐसे साथी है जिन्होंने आम आदमी पार्टी की सदस्यता नहीं ली लेकिन अपनी और से जितना बन सके पार्टी के लिए कार्य करते है।

3) व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा

कुछ साथी पार्टी द्वारा टिकट या पद न मिलने के कारण पार्टी छोड़ गए। इनमे अधिकतर वो लोग है जो पार्टी बनने के बाद जुड़े थे। ऐसे लोगो में दिल्ली के पूर्व विधायक धीर साहब, विनोद कुमार बिन्नी और अशोक चौहान जैसे नेता है।
बहोत कम ऐसे आंदोलन कारी साथी है जो इस पूर्णतः गैर राजनैतिक आंदोलन से जुड़े थे और पार्टी द्वारा टिकट न मिलने पर पार्टी छोड़ गए या निष्क्रिय हो गए। इसके मैं दो कारण मानता हु।
– वो साथी जिनके लिए पार्टी छोड़ने का कारण व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से जादा नेतॄत्व के साथ मतभेद रहा।
– वो साथी जिनमे पार्टी बनने के बाद राजनैतिक महत्वाकांक्षा उत्पन्न हुई। इन साथियो से मैं फिर वही कहूँगा जो हमेशा कहते आया हु –

“राजनीति बदलने की कोशिश में हम ये न भूले की राजनीति भी हमें बदलने की कोशिश कर रही है”

4) व्यक्तिगत मतभेद

इस आंदोलन से जुड़े अधिकतर आंदोलनकारी साथी जितने निस्वार्थ है उतने ही भावुक भी। पार्टी बनने से लेकर आज तक पार्टी का शीर्ष नेतृत्व दिल्ली चुनाव, लोकसभा चुनाव और फिर दिल्ली चुनाव में व्यस्त रहा। पुराने साथियो के साथ संवाद करने का समय शीर्ष नेतृत्व नहीं जुटा पाया। इस कारण कुछ लोग पार्टी से अलग होकर एक गैर राजनैतिक आम आदमी की तरह अपना जीवन व्यापन कर रहे है। कुछ ऐसे भी है जिन्होंने इस आंदोलन में अपना बहोत कुछ खो दिया। कुछ साथी मतभेदों के कारण जिम्मेदारियो से दूर है लेकिन एक कार्यकर्ता की तरह अपनी भूमिका निभा रहे है। मुझे पूरी उम्मीद है की आगामी दिल्ली चुनावो के बाद वो सभी साथी पूरी तरह सक्रीय हो जायेंगे, अधिकतर एक कार्यकर्ता की तरह सक्रिय है भी।

5) BJP के हितैषी

दूसरी श्रेणी में वो लोग थे जो UPA के खिलाफ भड़के इस जनांदोलन का राजनैतिक लाभ बीजेपी को मिले इस उद्देश् से शामिल हुए थे। ऐसे कई कार्यकर्ता हर शहर में आंदोलन से जुड़े थे। केवल राजनैतिक लाभ के लिए जुड़े लोग, निस्वार्थ भाव से देश पर अपना सबकुछ न्योछावर करने वाले युवाओ की बराबरी नहीं कर सकते। धीरे धीरे जब आंदोलन संघटित होने लगा, उन लोगो की भूमिका सिमित रह गई। अधिकतर जगहों पर आंदोलन का नेतृत्व उनके हाथो में नहीं था। नेताओ के भाषणों से साफ होने लगा की यह आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ है, बीजेपी शाषित राज्यो में हो रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ भी आवाज उठने लगी। इसे देख कई बीजेपी तथा आरएसएस के कार्यकर्ता आन्दोलन के समय ही आन्दोलन से दूर हो गए।

इसके बाद अगला पड़ाव आया आन्दोलन को राजनैतिक आन्दोलन में ढालने का। उस समय कुछ जाने माने लोगो ने अरविन्द केजरीवाल की आलोचना की. उनका तर्क था की इस आन्दोलन को गैर राजनैतिक ही रखना चाहिए. 2 अगस्त 2012 को जंतर मंतर पर मैं किरण बेदी जी को तिरंगा लहराते हुए लोगो से उनकी राय मांगते सुन रहा था। उनके हाव भाव से लग रहा था की वो बड़ी उत्साहित है राजनैतिक आन्दोलन को लेकर। जनरल वी के सिंह साहब ने भी उसी मंच से एक बढ़िया सा भाषण दिया था और हम सभी से आवाहन किया था की राजनैतिक विकल्प दे।

उसके बाद अचानक उनके व्यवहार में बदलाव आ गया। आन्दोलन को गैर राजनैतिक रखने की हिमायत करने लगे. कई दिनों तक समझ नहीं पाया की यही लोग अब क्यों ऐसा कह रहे है. तस्वीर साफ हुई केंद्र में मोदी सरकार बनने के साथ। वी के सिंह साहब बेझिजक चुनाव लडे और आज केंद्र में मंत्री भी है। किरण जी ट्विटर पर जिस उग्रता के साथ UPA सरकार के कार्यकाल में सरकार को कोसती थी उसी उग्रता से आज हर मुद्दे पर मोदी जी का बचाव करती दिखाई देती है। काले धन के नाम पर देशव्यापी आन्दोलन चलने की मंशा रखने वाले बाबा रामदेव आज खुले आम मोदी जी के समर्थन में है और काले धन पर उनका बचाव करते नज़र आ रहे है।

साथ ही कुछ छोटे नाम है. अश्विनी उपाध्याय, जिनकी उपलब्धि शायद इतनी ही है की उन्होंने आम आदमी पार्टी छोड़ दी। अब वो पार्टी के पुराने सभी कार्यकर्ताओ को रोजाना मेसेज कर बीजेपी का प्रचार कर रहे है।

अन्ना जी इस आन्दोलन के जन्मदाता है और हम सभी के श्रद्धास्थान है. राजनैतिक आन्दोलन के विषय में उनके विचार स्थिर नहीं रहे. उनके विषय में अलग से लेख लिखूंगा। वो इनमे से किसी श्रेणी में नहीं।

खैर अंत में इतना ही कहना चाहूँगा की कई कारणों से आम आदमी पार्टी में कुछ न कुछ कमिया रही – खासकर नियमित संवाद स्थापित न कर पाने की। लेकिन यह पार्टी वैकल्पिक राजनीति करने के लिए बनाई गई थी। इस राजनैतिक आन्दोलन का कोई विकल्प नहीं हो सकता।वैकल्पिक राजनीति का विकल्प पुराने ढर्रे वाली पार्टिया नहीं हो सकती। आम आदमी पार्टी को छोड़ किसी भी अन्य पार्टी से जुड़ने वाला कोई भी व्यक्ति वास्तव में वैकल्पिक राजनीति के प्रति इमानदार नहीं था। वह यहाँ किसी न किसी स्वार्थ के लिए आया था और जीतनी जल्दी पार्टी को छोड़ जाये उतना इस राजनैतिक आन्दोलन के हित में है। यह आन्दोलन नेताओ के लिए नहीं, आम आदमी के लिए है – “नेता आउट, आम आदमी इन”।

भविष्य में मैं इस राजनैतिक आन्दोलन से जुडा रहूँगा यह जरुरी नहीं, लेकिन मेरा राजनैतिक जीवन आम आदमी पार्टी से शुरू हुआ था और यही ख़त्म होगा।

इस विषय पर अपने विचार निचे दिए बॉक्स में लिखे।

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