kiran bedi joins BJP, AAP reactionPolitics 

गन्दी राजनीति में आपका स्वागत है किरण जी

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किरण बेदी जयपुर में – अन्ना आन्दोलन के दौरान

किरण जी के राजनीति में जुड़ने की खबरे आयी तो 2 अगस्त 2012 की यादे ताजा हो हो गयी. मंच के बगल में बने मेडिकल कैंप में मैं मरीजो को देख रहा रहा था और मंच पर किरणजी हाथो में तिरंगा लहराते लोगो से पूछ रही थी – “अन्ना पूछ रहे है, क्या हमें राजनैतिक विकल्प देना चाहिए? अपनी राय दीजिये.” उस समय का विडियो नहीं मिल पा रहा लेकिन आप में से भी अधिकतर लोगो को वो दृश्य याद होगा, बड़ी उत्साहित थी वो राजनैतिक विकल्प को लेकर.

राजनैतिक विकल्प देने के मुद्दे पर सभी की सहमति थी, प्रश्न था विकल्प का स्वरुप. अन्ना जी ने पहले ही घोषणा कर दी थी की वो स्वयं पार्टी में शामिल नहीं होंगे. लेकिन उस मंच से राजनैतिक विकल्प देने का निवेदन करने वालो में से सेवानिवृत्त जनरल वी के सिंह आज बीजेपी से सांसद है. अनुपम खैर की पत्नी बीजेपी से सांसद है और एक साल तक मोदी जी का बाहर से समर्थन करने के बाद आज किरण बेदी जी ने भी बीजेपी की सदस्यता ले ली. प्रश्न उत्पन्न होता है की क्या आन्दोलन के समय ये वास्तव में गैर राजनैतिक थे या उस समय भी बीजेपी के प्रति अपनी निष्ठां निभा रहे थे?

24 नवम्बर 2012 को राजनातिक विकल्प का स्वरुप सार्वजनिक किया गया. तय हुआ की केवल राजनैतिक विकल्प नहीं दिया जायेगा बल्कि वैकल्पिक राजनीति की स्थापना की जाएगी. इन दोनों में अंतर पर मैं पहले लिख चूका हु. किरण बेदी जी, वी के सिंह साहब इसमे शामिल नहीं हुए. लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा होने से पहले तक सिंह साहब यही कहते रहे की मैं गैर राजनैतिक रहूँगा और अन्ना जी के साथ जनतंत्र मोर्चा के तहत जनजागरण का कार्य करूँगा. किरण बेदिजी ने साफ किया की मैं गैर राजनैतिक रहना ही पसंद करुँगी. ये वो मौका था जब कुछ लोग मिलकर देश की राजनीति को बदलने निकले थे. पैसे और ताकत के बल पर, धर्म और जाती के नाम पर लड़ी जाने वाली, अपराधियों और भ्रष्ट नेताओ से गन्दी हो चुकी राजनीति को साफ करने निकले थे. लेकिन इस पावन कार्य से बड़ा किरणजी का संकल्प था गैर राजनैतिक रहने का.

इसके बाद मौका आया एक साल बाद. दिल्ली में विधान सभा चुनाव हुए. आम आदमी पार्टी ने अपनी और से किरण बेदी जी को आवाहन किया की वो आम आदमी पार्टी की मुख्यमंत्री पद की दावेदार बने. ये वो मौका था जब दिल्ली को पिछले 15 सालो से चले आ रहे कांग्रेस के भ्रष्ट शासन से आजाद करवाना था, किरणजी ने इसे ठुकरा दिया. उनका तब भी यही कहना था की राजनीति में उतरने की मेरी कोई मंशा नहीं है.

इसके बाद 49 दिनों की वो सरकार चली जिसने देश की राजनीति ही बदल दी. हर कोई अब केजरीवाल बनना चाहता था, उसकी तरह सादगी से रहना, बिना सुरक्षा तामझाम के जनता के बिच जाना, मानो अब फैशन बन रहा था. महाराष्ट्र हो या हरियाणा अब दुसरे प्रदेश की सरकारे भी “आप” सरकार की तरह बिजली के दाम कम करने की बाते कर रही थी. केजरीवाल की नक़ल तो हर कोई करना चाहता था लेकीन उसकी आलोचना करना उनकी राजनैतिक मज़बूरी थी. राजनैतिक पार्टियों के अलावा कभी कभार केजरीवाल की आलोचना होती तो किरण जी उसमे आगे रहती. और संघटनो की तरह आम आदमी पार्टी में भी कमिया हो सकती है लेकिन निश्चित वो बुराइया नहीं है जिन्होंने इस देश की राजनीति को गन्दा कर रखा था – इसमे कोई भ्रष्ट नहीं है कोई अपराधी नहीं है. तौर तरीको में मतभेद हो सकता है. किरण जी ने आम आदमी पार्टी के तौर तरीको की आलोचना तो बहोत की लेकिन उन्हें सुधारने में योगदान नहीं दिया. केजरीवाल ने किरण जी को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनने का निमंत्रण देकर अपनी मंशा साफ कर दी थी. किरण जी के लिए भी यह मौका था की वो इस पार्टी को अपने हिसाब से चलाती लेकिन उन्होंने इसके बाहर रह कर इसकी आलोचना करना बेहतर समझा. मैं इसे भी गलत नहीं मानता, आलोचक सबसे अच्छा मित्र होता है इसलिए उनकी आलोचनाओ को भी हमेशा सराहा.

लेकिन आज के उनके इस निर्णय से उनकी नियत पर ही सवाल उठते है. यदि बीजेपी में शामिल होना था तो आपने आन्दोलन में ही हिस्सा क्यों लिया? 2011 में भी जब अन्ना आन्दोलन हुआ, बीजेपी के साथ मिलकर आप राजनैतिक आन्दोलन कर सकती थी. जब राजनीति में आना ही था तो फिर एक ऐसी पार्टी में क्यों जो उस व्यवस्था का हिस्सा है जिसके खिलाफ जन आन्दोलन में जनता ने आपको अपना नेतृत्व सौंपा? यदि आप का विरोध केवल कांग्रेस से था तो उस समय क्यों नहीं जब दिल्ली में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस की सरकार को चुनौती दे रही थी? आज दिल्ली में कांग्रेस का तो अस्तित्व ही नहीं है. फिर इस समय ऐसी क्या मजबूरी है की आपको अपना संकल्प तोड़ कर राजनीति में उतरना पड़ा?

केजरीवाल को रोकना? साबित कर दीजिये की वो भ्रष्ट है, मैं भी आपके साथ हो लेता हु. साबित कर दीजिये की वो अपराधी है, कई और लोग आपका साथ देंगे. और नहीं तो फिर आप ही अपनी नियत बता दीजिये. राजनीति की इस गन्दगी में उतरना ही था तो उस टोली में जुड़ती जो इसे साफ करने के लिए अपनी जान दाव पर लगा रहे है, आप तो गन्दगी करने वालो में शामिल हो गई. और वो भी उस समय जब सबसे निर्णायक लड़ाई होनी है. आपके इस निर्णय ने आपकी नियत साफ कर दी. कही इस घोषणा से पहले आप “आम आदमी पार्टी” में शामिल हो जाती तो केजरीवाल आप को ही दिल्ली के मुख्यमंत्री का दावेदार बना देता, और उसके जाने अनजाने में दिल्ली ठगी जाती, देश ठगा जाता.

केजरीवाल ने तो पिछले साल भी आपको निमंत्रण दिया था और आज भी आपके निर्णय का स्वागत किया है. दिल्ली की जनता आपके इस कदम पर क्या प्रतिक्रिया देगी यह देखना होगा. आपकी नियत साफ होने से पहले हुए एक सर्वे में दिल्ली की 1% जनता आपको मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती थी, अब तो आप नेता बन गई हो. गन्दी राजनीति में आपका स्वागत है, आप गन्दगी फ़ैलाने वालो की मजबूत करे, हम गन्दगी साफ करते रहेंगे.


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