Politics 

आम आदमी का स्वराज, नेताओ के लिए अराजकता

इस सप्ताह इंडिया टुडे के मुखपृष्ट पर फोटो के साथ केजरीवाल की जीवनी पर लेख छपा. बचपन से कॉलेज और समाजसेवा से राजनीति तक के सफ़र के साथ बहुत कम समय में देश के राजनीति को एक नया मोड़ देने के लिए केजरीवाल की प्रशंसा की गई. पडोसी देश पाकिस्तान में भी केजरीवाल को लेकर खबरे छपने लगी, टीवी चैनलो पर बहस होने लगी. टाइम्स अखबार के लिए किये गए एक सर्वे के अनुसार दुनिया के 30 सबसे प्रशंसित हस्तियों की सूचि में केजरीवाल को शामिल किया गया

मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज चौहान ने भी भ्रष्टाचार के खिलाफ हेल्पलाइन शुरु करने का निर्णय लिया। “आप” का असर केवल नेताओ या पार्टियो तक सिमित नहीं था। नागपुर में एक निजी बिजली वितरण कम्पनी ने भी रिश्वतखोरी रोकने के लिए हेल्पलाइन शुरू कर दी।

हरयाणा के IGP रघुवीर शर्मा नौकरी से VRS लेकर “आप” की सदस्यता ली। कई शहरों से सेवानिवृत्त नौकरशाह, पुलिस अधिकारी भी “आप” से जुड़ने की खबरे आई. मिल्खा सिंह की पत्नी और बेटी ने भी “आप” की सदस्यता ली.

केजरीवाल की बढती लोकप्रियता का सबसे अधिक खतरा था बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेन्द्र मोदी को. कई सालो के इन्तेजार के बाद बीजेपी को बिना प्रयास एक अच्छा मौका हाथ लगा था. विपक्ष की भूमिका निभाने में पूरी तरह विफल रहने के बावजूद अन्ना हजारे एवं अरविन्द केजरीवाल द्वारा चलाये देशव्यापी जनांदोलन का पूरा राजनैतिक लाभ उठाने का मौका बीजेपी गवा नहीं सकती थी. बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चिंता थी केजरीवाल को रोकना. केजरीवाल ने जिस प्रभावी ढंग पहले 2 सप्ताह में अपने अधिकतर चुनावी वादे पुरे कर दिए और एक भ्रष्टाचार मुक्त, आम आदमी के हितो के लिए काम करने वाली सरकार दी, बीजेपी के लिए चुनौती बढ़ रही थी. और इसी दौरान केजरीवाल सरकार की उपलब्धियो को झुटलाने का प्रयास शुरू हुआ. एक तरफ देश भर के अलग अलग पार्टियों के नेता केजरीवाल की राह पर चलने का प्रयास कर रहे थे और दूसरी और बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व किसी तरह केजरीवाल की बढती लोकप्रियता को रोकने के प्रयास में लग गया. टेलीग्राफ में छपे एक लेख के अनुसार केजरीवाल की इस कार्यप्रणाली को अराजक घोषित करने का निर्णय आज ही के दिन हो गया था. और बीजेपी आज एक साल बाद भी अराजक और भगोड़ा इन अनर्गल आरोपों के अतिरिक्त केजरीवाल के खिलाफ बोलने को कुछ खोज नहीं पाई. पूर्व में “आप” की तारीफ कर चुके केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश को अपनी ही पार्टी से विरोध झेलना पड़ा. तो आज उन्होंने भी यु टर्न लेते हुए “आप” से अराजकता फ़ैलने का खतरा हो सकता है ऐसा बयान दे दिया. आज ही के दिन दो अलग अलग अखबारों में कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों द्वारा केजरीवाल के लिए अराजक शब्द का प्रयोग शायद केवल संयोग था.

भारत में शायद पहली बार सच्चा लोकतंत्र स्थापित हो रहा था, सत्ता नेताओ के नहीं आम आदमी के हाथ थी. सरकार की प्राथमिकताये पूंजीपतियों को लाभ पहुँचाने वाली नीतियों से हटकर आम आदमी को मुलभुत सुविधाए पहुँचाने की और जा रही थी. किसानो की जमीन हड़पने के लिए कानून बनाने के बजाय सरकार स्वराज कानून लाने का प्रयास कर रही थी. कई सालो से देश को लुटते आये भ्रष्ट नेताओ को सजा दिलाने के लिए जन्लोकपाल कानून लाने का प्रयास कर रही थी. इस तरह का राज आम आदमी की नजरो में भले स्वराज हो, सत्ता लोलुपत नेताओ के लिए यह अराजकता ही है.

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